लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपने सियासी कुनबे को बढ़ाने में लगे हैं. एक तरफ कांग्रेस समेत 26 विपक्षी दल बेंगलुरु में जुटे थे तो दूसरी ओर 38 दलों के समर्थन के साथ दिल्ली में बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की मीटिंग हुई. बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए एड़ी चोटी की जोर लगा रही है दूसरी ओर विपक्षी एकता दल भाजपा को सत्ता से दूर ढकेलने के लिए जोर आजमाइश कर रही है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच देश में कुल आठ दल ऐसे भी हैं जो इन दोनों से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या ये सभी दल मिलकर थर्ड फ्रंट बनाने की कवायद करेंगे?इन आठ दलों में बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस, जेडीएस, अकाली दल, बसपा, एआईएमआईएम और एआईयूडीएफ शामिल हैं. इनमें कुछ दल तो ऐसे हैं जो कई राज्यों में अपने दम पर सत्ता में हैं जबकि कुछ ऐसे हैं जो पहले या तो कांग्रेस या फिर एनडीए के साथ रह चुके हैं. इसके बाद भी आगामी चुनाव को लेकर ये दल अभी तक किसी भी फैसले पर नहीं पहुंच पाए हैं।
इन दलों की सियासी वर्चस्व की बात करें तो ओडिशा में बीजू जनता दल की सरकार है और पार्टी के मुखिया नवीन पटनायक खुद मुख्यमंत्री हैं. ओडिशा में पटनायक का वोट बैंक और उनकी लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. पांच बार अपने दम पर सरकार बना चुके हैं. 2019 में हुए विधानसभा में 147 सीटों में 112 सीटों पर जीत हासिल की है. राज्य में लोकसभा की कुल 21 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा में बीजद के खाते में 12 सीटें गई थी जबकि बीजेपी 8 सीट और कांग्रेस एक सीट जीतने में कामयाब रही थी।
तेलंगाना में कुछ ऐसा ही हाल है. यहां टीआरएस की सरकार और पार्टी के मुखिया के चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं. राज्य की 119 विधानसभा सीटों में से 90 पर उनकी पार्टी का कब्जा है. वहीं लोकसभा की बात करें तो 17 सीटों में 9 पर टीआरएस का कब्जा है. यही हाल आंध्र प्रदेश में भी है. यहां भी वाइएसआर कांग्रेस सत्ता में बैठी हुई है और वाइएस जगन मोहन रेड्डा मुख्यमंत्री है. राज्य में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं, इनमें से 22 सीटों पर वाईएसआर कांग्रेस का कब्जा है।अब बात कर्नाटक में जेडीएस की करें तो यह पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा की पार्टी है. जेडीएस का राजनीतिक परिदृश्य केरल और कर्नाटक में ही है. पिछली बार के लोकसभा चुनाव में राज्य की 28 सीटों में से जेडीएस एक पर जीत हासिल की थी. अकाली दल और बसपा का हाल सबको पता ही है. अकाली दल कभी एनडीए का हिस्सा था, लेकिन फिलहाल दूर है. हालांकि, अकाली दल को लेकर चर्चा है कि उसकी एनडीए में वापसी होगी, लेकिन कब होगी इसे लेकर अभी तक कयासों का दौर ही चल रहा है।
यही हाल यूपी की पूर्व सीएम मायावाती की बसपा का भी है. बसपा भी अभी तक अपना स्टैंड क्लियर नहीं कर पाई है. रही बात असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की तो यह मुख्य रूप से तेलंगाना से आती है. असदुद्दीन ओवैसी पार्टी के इकलौते सांसद हैं. ओवैसी भी न तो सत्ता पक्ष की तरफ है और नहीं विपक्ष के साथ. कुल मिलाकर अपने-अपने राज्यों में इन राजनीतिक दलों का अपना वोट बैंक और राज्य की राजनीति में इनकी अहम भूमिका भी रहती है इसके बाद भी अभी अपना स्टैंड क्लियर नहीं कर पाए है।