बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता, राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी के जदयू टूटने के बयान ने राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है. जितने मुंह, उतनी बातें होने लगी हैं. महाराष्ट्र में एनसीपी में टूट के अगले दिन किए गए उनके दावे को समझने की कोशिश करते हैं तो एक नई कहानी सामने आती है. यह कहानी लोकसभा चुनाव से जुड़ती हुई दिखती है. विधान सभा में न तो ऐसी गणित है और न ही भारतीय जनता पार्टी की ऐसी योजना. हाँ, बीजेपी हर हाल में नीतीश कुमार को कमजोर करना चाहती है. इस तरह पार्टी में टूट-फूट को लेकर जितनी चर्चाएं होंगी, नीतीश उतने ही कमजोर होंगे.आइए, समझते हैं. बिहार विधान सभा में कुल 243 सीटें हैं. आरजेडी के 79, बीजेपी के 77, जेडीयू के 45, कांग्रेस के 19, हम के चार, कम्युनिस्ट पार्टी के 16 एमएलए हैं. इस समय जदयू ने आरजेडी, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों, हम आदि के समर्थन से सरकार बनाई हुई है. ऐसे में सुशील मोदी के दावे के हिसाब से अगर दो तिहाई जदयू विधायक टूट भी जाएं तो इनकी संख्या सिर्फ 29 बनती है।

सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. बीजेपी और जदयू के टूटे हुए विधायकों को जोड़ भी दें तो संख्या बनती है 106.मतलब कम से कम 16 विधायक और चाहिए. कांग्रेस, कम्युनिस्ट फिलहाल बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. हम के चारों विधायक समर्थन दे दें तो संख्या 110 बनती है. इस सूरत में जादुई नंबर पूरा होने के लिए केवल जदयू के टूटने से बात नहीं बनने वाली है. हाँ, नीतीश कुमार समेत सभी 45 विधायक बीजेपी में शामिल हो जाएं तो बात बनती हुई दिखती है. पर, ऐसा होने नहीं जा रहा है. हालाँकि, राजनीति संभावनाओं का खेल है. कुछ भी हो सकता है. पर, फिलहाल जो हालात हैं, उसमें बिहार में बीजेपी सरकार बनने की संभावना कम है.अब सवाल यह है कि सुशील मोदी यह शोर क्यों कर रहे हैं? उनके दावे में कितनी सच्चाई है? इस दावे का आखिर आधार क्या है? इन सवालों से पर्दा उठाते हैं बिहार के सीनियर जर्नलिस्ट डॉ तीर विजय सिंह. वे कहते हैं असल कहानी लोक सभा चुनाव की है. भारतीय जनता पार्टी के सामने अभी विधान सभा चुनाव या सरकार समस्या ही नहीं है. समस्या है लोकसभा चुनाव. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. 39 सीटें एनडीए गठबंधन को मिली थीं. इनमें से 16 जदयू के एमपी हैं, जो अब एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं.इन सीटों पर बीजेपी ने कभी कोई काम भी नहीं किया क्योंकि गठबंधन की सीटें थीं. पर, अब बाजी पलट चुकी है. बीजेपी के पास ज्यादा से ज्यादा सीटें लेने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. डॉ सिंह बताते हैं कि कुछ जदयू के कुछ एमपी बीजेपी के करीब हैं. वे लोकसभा चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ सकते हैं. पर, यह संख्या अभी भी इकाई में ही है. वे कहते हैं कि सारी चिंता के मूल में लोकसभा चुनाव है. बीजेपी यह मानकर चल रही है कि सभी 39 सीटें उसके पास नहीं आने वाली. ऐसे में माहौल बनाकर, चर्चा करके जितना संभव हो, जदयू को कमजोर किया जाए, बस इतनी ही नीति है.वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं कि बीजेपी के लिए फिलवक्त राज्य सरकार गिराने के लिए अनुकूल माहौल नहीं है. वे जोड़ते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है फिर भी दूर दूर तक ऐसी उम्मीद नहीं दिखती. जदयू में बेचैनी देखी जा रही है लेकिन अभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है कि जदयू विधायक इतने बड़े पैमाने पर टूट जाएं. हाँ, सुशील मोदी और भारतीय जनता पार्टी हर हाल में लोकसभा चुनाव को लेकर चिंतित भी हैं और इसलिए पैनिक क्रियेट करने की मंशा से इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं. बिहार में यह आम हो चला है. इस दावे को हवा इसलिए मिल गई क्योंकि सीएम नीतीश कुमार सभी विधायकों सांसदों से अलग अलग मिले हैं. ऐसे बीजेपी को मौका मिल गया.इस तरह कहा जा सकता है कि बीजेपी के सामने चुनौती लोकसभा चुनाव में आपण सीटें बरकरार रखने की है. क्योंकि एक-एक सीट बीजेपी के लिए अब महत्वपूर्ण हो चली है. बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी ने अधिकतम सीटें जीती थी पिछले लोकसभा चुनाव में. अब उसके सामने चुनौती है इन्हें बरकरार रखने की. नीतीश कुमार इसलिए भी निशाने पर हैं क्योंकि विपक्षी एकता की धुरी बने हुए हैं. यद्यपि, यह देखना अभी बाकी है कि विपक्षी एकता क्या गुल खिलाएगी? पर इसकी क्रेडिट तो उन्हीं के खाते में हैं।

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