दिल्ली में जल्द ही गुजरात का ‘कानून’ लागू होने वाला है. दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ‘द गुजरात प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टिविटीज एक्ट 1985’ को राष्ट्रीय राजधानी में लागू करने की सिफारिश की है. इस संबंध में गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया है. आपको बताते हैं कि ये कानून क्या है और क्यों चर्चा में रहा है.इस कानून के तहत सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए खतरनाक अपराधियों, अवैध शराब बेचने वालों, नशे के अपराधियों, ट्रैफिक कानून को तोड़ने वाले और संपत्ति हड़पने वालों की ओर से की जाने वाली असमाजिक और खतरनाक गतिविधियों को रोकने के लिए उन्हें ऐहतियातन हिरासत में लेने का प्रावधान है. गुजरात का पीएएसए अधिनियम चर्चाओं का विषय रहा है।

राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए गुजरात सरकार की कई बार आलोचना की है. कोर्ट की ओर से भी इस एक्ट को लेकर फटकार लगाई जा चुकी है. ये कानून दो साल पहले भी तब चर्चा में रहा था जब एक डॉक्टर को इस कानून के तहत हिरासत में लिया गया था.दरअसल, डॉक्टर मितेश ठक्कर को पुलिस ने रेमेडिसविर इंजेक्शन (कोरोना के मरीजों को दिए जाने वाला इंजेक्शन) की बिक्री के संदेह में हिरासत में लिया था. 27 जुलाई 2021 को 106 दिन जेल में बिताने के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने मितेश ठक्कर को रिहा करने का आदेश दिया था.कोर्ट ने पीएएसए अधिनियम के तहत उन्हें हिरासत में रखने पर रोक लगा दी थी. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, राज्य ने हिरासत कानूनों के तहत 2018 और 2019 में क्रमशः 2315 और 3308 नागरिकों को हिरासत में लिया।

गुजरात हाई कोर्ट के निर्देशों पर बीते मई के महीने में गुजरात सरकार ने असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम के तहत हिरासत आदेश पारित करने को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की थी. इसमें संबंधित अधिकारियों से केवल एक अपराध पर उचित सत्यापन और आधार के बिना इस कानून को लागू नहीं करने के लिए कहा गया था. इसके बाद 3 मई को गुजरात के गृह विभाग ने अधिकारियों के लिए निर्देश जारी किए थे जिसमें उन्हें तथ्यों के बारे में सतर्क रहने और यदि व्यक्ति की ओर से सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की संभावना नहीं है, तो पीएएसए लागू नहीं करने के लिए कहा गया था।

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