बिहार में शराबबंदी कानून लागू है। राज्य के अंदर शराब पीना या बेचना या इससे संबंधित कोई भी कार्य करना कानूनी जुर्म है और इसमें कठोर सजा का प्रावधान है। लेकिन आए दिन इस शराबबंदी कानून को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठते रहते हैं। इसी कड़ी में अब एक ताजा मामला सुप्रीम कोर्ट में शराबबंदी मामले पर हुई सुनवाई से जुड़ा हुआ है।दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में 2015 में कार से 25 लीटर से अधिक विदेशी शराब के साथ पकड़े गए एक युवक के तरफ से दर्ज याचिका पर सुनवाई हो रही थी।
जिसके बाद इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि, क्या बिहार सरकार के पास ऐसा कोई डाटा है जो यह बता सके कि आखिर राज में शराबबंदी लागू होने से खपत में कितनी कमी आई है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि, वह सरकार के मंसूबों पर सवाल नहीं उठा रहें हैं बल्कि जमानत के लिए जो याचिका हैं लगातार सुप्रीम कोर्ट में मिल रही है उसके अनुसार यह बातें कहीं जा रही है।मिली जानकारी के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ, कृष्ण मुरारी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने बिहार के मधुबनी जिला के निवासी अनिल कुमार को अग्रिम जमानत देने पर सवाल उठाया। उसे 2015 में कार में 25 लीटर से अधिक विदेशी शराब के साथ पकड़ा गया था। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका का विरोध करने वाले राज्य के वकील की दलीलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि, “क्या आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में बिहार से जमानत के लिए कितनी याचिकाएं आ रही हैं? इसका बड़ा हिस्सा बिहार के शराबबंदी कानून से जुड़ा हुआ है। क्या कोई अध्ययन किया गया है या कोई ऐसा डेटा है जो यह साबित करता हो कि शराबबंदी कानून के कारण बिहार में शराब की खपत का ग्राफ नीचे आ रहा है?”इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, “हम कानून लागू करने की आपकी मंशा पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, बल्कि हम आपको इस अदालत में आने वाले जमानत के आवेदनों की संख्या के बारे में तथ्य बता रहे हैं।
यह कोर्ट पर बोझ डाल रहा है। ऐसी स्थिति तब बनती है जब बिना किसी अध्ययन या डेटा के बिना कानून लागू किया जाता है।”वहीं, जब बिहार सरकार के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए यह कहा कि आरोपी की कार से भारी मात्रा में विदेशी शराब बरामद की गई तो न्यायमूर्ति मुरारी ने कहा, “क्या आपको लगता है कि 25 लीटर शराब एक बड़ी मात्रा है? आप पंजाब का दौरा क्यों नहीं करते हैं?” बिहार सरकार के वकील ने कहा कि शराबबंदी कानून में एक संशोधन किया गया है, जिसके तहत पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माने के साथ रिहा किया जा सकता है। इस व्यवस्था ने न्यायिक प्रणाली पर बोझ को काफी कम कर दिया है।