सुप्रीम कोर्ट में जातीय गणना पर रोक लगाने से जुडी याचिका पर अब 18 अगस्त को सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह बिहार सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण के आदेश को बरकरार रखने वाले पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर 18 अगस्त को सुनवाई करेगा। पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार चाहे तो गणना करा सकती है, इसके बाद नीतीश सरकार ने सभी डीएम को आदेश दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में जातीय गणना के बचे काम पूरा करें. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार सरकार जातीय गणना नहीं, सिर्फ लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से संबंधित जानकारी लेना चाहती है, ताकी उनके लिए योजना बनाई जा सके. बिहार में जातीय गणना की शुरुआत सात जनवरी से हुई थी. पहले चरण का सर्वेक्षण पुरा हो गया. दूसरे फेज का काम 15 अप्रैल से शुरू किया गया था. वहीं जातीय गणना का विरोध करने वालों को पहले ही पटना हाई कोर्ट से झटका लग चुका है. पटना हाई कोर्ट ने इसी महीने दिए अपने आदेश में राज्य सरकार के जातीय सर्वे कराने के तर्क का समर्थन किया था. इसके बाद राज्य में फिर से जातीय गणना के शेष बचे काम को पूरा करने का कार्य किया जा रहा है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई 18 अगस्त तक टलने से अब सरकार के पास इसे और ज्यादा तेजी से कराने का मौका मिला है. वहीं अब नजर 18 अगस्त की सुनवाई पर होगी जिसके बाद यह पता चलेगा कि कोर्ट से नीतीश सरकार को राहत मिलती है या फिर जातीय गणना पर रोक लगेगी. देश में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी. उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे. तब देश आबादी 30 करोड़ के करीब थी अब तक उसी आधार पर यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं. 1951 में जातीय जनगणना के प्रस्ताव को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि इससे देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है.आजाद भारत में 1951 से 2011 तक की हर जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े ही जारी किए गए. मंडल आयोग ने भी 1931 के आंकड़ों पर यही अनुमान लगाया कि ओबीसी आबादी 52% है. आज भी उसी आधार पर देश में आरक्षण की व्यवस्था है. जिसके तहत ओबीसी को 27 फीसदी , अनुसूचित जाति को 15 फीसदी तो अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी आरक्षण मिलता है।