प्रशांत किशोर इन दिनों समस्तीपुर में गांव-गांव घूमकर लोगों को वोट की ताकत बता रहे हैं. इसी क्रम में वह लोगों की समस्याओं पर नेताओं एवं पार्टियों पर तीखे हमले भी कर रहे हैं. आज पीके ने बीते दिनों राहुल गांधी से लालू-तेजस्वी की मुलाकात पर जमकर चुटकी ली. अपने राजनीतिक अनुभव से बता दिया कि क्या कुछ इसके मायने हैं.प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी से लालू-तेजस्वी की हुई मुलाकात पर कहा कि इन चीजों का कोई महत्व नहीं है कि कौन किससे मिलता है, कौन बैठकर चाय पीता है, प्रेस वार्ता करता है. पिछले महीने विपक्ष की 26 पार्टियां बिहार में बैठी इसके बाद बेंगलुरु में बैठी. मैं शुरू से कह रहा हूं कि दलों और नेताओं के बैठने से आप सशक्त विपक्ष और विकल्प नहीं हो सकते हैं. जब तक कोई कार्यक्रम नहीं हो, नीति नहीं हो, जमीन पर कार्यकर्ता नहीं हों और लोगों में आपके प्रति प्रेम नहीं है, विश्वास नहीं है तब तक आप चाहें जितने नेताओं के साथ बैठ जाएं इससे क्या होता है?पीके ने कहा कि मैं पहले दिन से उदाहरण देकर भी बताता हूं कि कई लोगों को लगता है कि 1977 में सारे विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी को हरा दिया. इस बात में सच्चाई नहीं है।

आपातकाल देश में लागू नहीं होता, जयप्रकाश नारायण का आंदोलन नहीं होता तो सिर्फ विपक्षी पार्टी के एक होने से इंदिरा गांधी नहीं हार जातीं. विपक्षी पार्टियों के पास जब तक कोई मुद्दा नहीं होगा, तब तक जितने पार्टी के नेता चाय पी लें, खाना खा लें या प्रेस कॉन्फ्रेंस साथ में कर लें, उससे जमीन पर क्या फर्क पड़ने वाला है?सामान्य लोग जो गांवों में रहते हैं जिन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और जो बीजेपी को वोट करते हैं उन्हें इस बात से कितना फर्क पड़ रहा है कि 26 दलों के लोग पटना में मिले इसलिए बीजेपी को वोट नहीं देंगे. जनता को इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है. जनता को इस बात से मतलब है कि उनके गांव में सड़क बनी या नहीं, भ्रष्टाचार खत्म हुआ या नहीं, रोजगार मिला या नहीं।

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