आर्टिकल 370 के हटाए जाने से पहले जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35ए ने भारत के लोगों के तमाम मौलिक अधिकारों को छीन लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार (28 अगस्त) को ये टिप्पणी की.हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के कहा, अनुच्छेद 35ए ने, जिसे 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ा गया था, लोगों को कम से कम तीन मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया.

1- अनुच्छेद 16(1) के तहत सार्वजनिक नौकरियों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता

2- अनुच्छेद 19(1)(एफ) और 31 के तहत संपत्तियों का अधिग्रहण

3- अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार

पीठ ने टिप्पणी की कि 1954 के संवैधानिक आदेश ने भाग III (मौलिक अधिकारों से संबंधित) को जम्मू-कश्मीर में लागू किया लेकिन उसी क्रम में, अनुच्छेद 35ए बनाया गया जिसने तीन क्षेत्रों में अपवाद बनाकर लोगों के तीन मूल्यवान मौलिक अधिकारों को छीन लिया. बेंच में प्रधान न्यायाधीश के साथ ही जस्टिस संजय कृष्ण कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस सूर्य कांत शामिल हैं.अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार दिए गए थे. इसके साथ ही राज्य की विधायिका को ऐसे कानून बनाने का अधिकार मिला, जिसे दूसरे राज्यों के लोगों के समानता के अधिकार या भारतीय संविधान के तहत किसी अन्य अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं नहीं दी जा सकती थी.अनुच्छेद 35ए को अनुच्छेद 370 तहत मिली शक्तियों का प्रयोग करके संविधान में जोड़ा गया था. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के साथ ही 35ए को भी रद्द कर दिया गया था. सोमवार को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 11वें दिन सुनवाई हुई. इस दौरान सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि अनुच्छेद 35ए ने न केवल जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों और अन्य निवासियों के बीच बल्कि देश के अन्य नागरिकों के बीच भी एक कृत्रिम अंतर पैदा किया. पीठ ने इस बात पर अफसोस जताया कि संवैधानिक प्रावधान ने मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए एक पूरी तरह से अलग तंत्र निर्धारित किया।

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