भाजपा विरोधी राजनीतिक दल दुविधा के दौर से गुजर रहे हैं। उन्हें ठीक-ठीक समझ में नहीं आ रहा कि वे बीजेपी की राह चलें या अपनी कोई राह बनाएं। नतीजा सामने है। दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम। विपक्ष की दुविधा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा में जिसे अवगुण अधिकतर विरोधी दल बताते थकते नहीं, वे कई बार वही काम करने लगते हैं। हंसी तो तब आती है, जब हिन्दू, हिन्दुत्व, हिन्दू देवी-देवताओं और हिन्दू धर्मग्रंथों को कोसने वाले कई विपक्षी पार्टियों के नेता मंदिरों में माथा टेकने पहुंच जाते हैं। कांग्रेस में दो बार पीएम फेस रहे और तीसरी बार भी पीएम फेस बनने के लिए बेचौन राहुल गांधी खुद को ब्राह्मण कुल का बालक बताने के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं।
जनेऊ पहनते और चंदन-टीका लगाते रहे हैं, ताकि लोगों को विश्वास दिला सकें कि वे ठेठ ब्राह्मण और हिन्दू हैं। आरजेडी के संस्थापक सुप्रीमो लालू यादव तो बेटों के साथ तिरुपति बालाजी मंदिर में मुंडन भी कराते हैं। ममता बनर्जी को चुनाव में चंडी पाठ की अचानक जरूरत महसूस होने लगती है।एक तरफ भाजपा विरोधी दलों के नेता इस अंदाज में दिखते हैं तो दूसरी ओर उनके मन से माइनॉरिटी मोह नहीं जा रहा। कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति हो या तीन तलाक और समान नागरिक संहिता का सवाल, विरोधी दल इतने बेचैन हो जाते हैं कि छिपाने की कोशिश के बावजूद उनका मुस्लिम प्रेम नहीं छिप पाता। मुस्लिम राजनीति तो कांग्रेस का आधार ही रही है। आज भी कांग्रेस को मुसलमान वोटरों पर अधिक भरोसा है। हालांकि ममता बनर्जी की टीएमसी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, लालू यादव की पार्टी आरजेडी और नीतीश कुमार के जेडीयू का झुकाव भी मुसलमानों के प्रति हिन्दुओं से अधिक रहा है। लालू यादव ने तो अपनी पार्टी को ताकत देने के लिए बिहार में मुसलमाल-यादव का एम-वाई समीकरण ही बना लिया था। नीतीश कुमार भी हिन्दुओं के आयोजन में भले न जाएं, पर वे इफ्तार पार्टियों में शामिल होते हैं। मजारों पर चादरपोशी करते हैं। लालू और नीतीश ने इसका फायदा भी भरपूर उठाया है तो कांग्रेस अब भी उठा रही है।