प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 में सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिशों में हैं. 23 जून को पटना में विपक्षी दलों की बैठक होने जा रही है, लेकिन उससे पहले आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के सामने गठबंधन के लिए एक फॉर्मूला रखा है.केजरीवाल सरकार के मंत्री और आम आदमी पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती है तो आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेंगी. इतना ही नहीं, भारद्वाज ने इसके लिए दिल्ली के 2015 और 2020 विधानसभा चुनाव नतीजों का उदाहरण दिया कि कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. ऐसे में सवाल उठता है कि AAP के फॉर्मूले को कांग्रेस क्या स्वीकार करेगी?आम आदमी पार्टी लगातार अपना विस्तार करने में जुटी है. दिल्ली और पंजाब की सत्ता पर काबिज है, जिसके चलते 2024 के चुनाव में उसने दोनों ही राज्यों की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है।

इसके अलावा दूसरे राज्यों पर उसकी नजर है, लेकिन दिल्ली की तरह सियासी आधार नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के सामने 2024 के चुनाव के लिए एक शर्त रखी है और उसके बदले मध्य प्रदेश और राजस्थान छोड़ने की बात कर रही है.पंजाब और दिल्ली दोनों ही राज्यों में कांग्रेस से आम आदमी पार्टी ने सत्ता छीनी है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न अलग-अलग होते हैं. दिल्ली में सात और पंजाब में 13 लोकसभा सीटें है. इस तरह से दोनों राज्यों की सीटें मिलकर कुल 20 सीट होती हैं. 2019 के लिहाज से देखें तो कांग्रेस 8, आम आदमी पार्टी एक, बीजेपी 9, अकाली दो सीटें जीतने में सफल रही थी. दिल्ली की सभी सीटें बीजेपी ने जीती थी, लेकिन कांग्रेस 5 सीटों पर नंबर दो और आम आदमी पार्टी दो सीटों पर नंबर पर रही थी.दिल्ली की सत्ता पर केजरीवाल भले ही प्रचंड बहुमत के साथ पिछले 10 साल से काबिज हों, लेकिन इस बीच 2014 और 2019 के हुए लोकसभा चुनाव में वह एक भी सीट नहीं जीत सके हैं. पंजाब में भी कांग्रेस का पलड़ा आम आदमी पार्टी पर हमेशा भारी रहा है. पंजाब में जरूर आम आदमी पार्टी की सरकार बन गई है, लेकिन कांग्रेस की स्थिति अभी इतनी खराब नहीं है कि आम आदमी पार्टी के लिए पूरा राज्य छोड़ दे. कांग्रेस ने राज्य की सत्ता भले ही गवां चुकी हो, लेकिन अपनी वापसी की उम्मीद छोड़ी नहीं है. ऐसे में कांग्रेस किसी भी सूरत में पंजाब जैसे राज्य की सभी सीटें आम आदमी पार्टी को देने के लिए कभी भी रजी नहीं होगी.बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दिल्ली में गठबंधन तय माना जा रहा था, लेकिन सीट शेयरिंग पर बात आकर अटक गई थी और दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव नहीं लड़ सकीं थी।

आम आदमी पार्टी दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से 5 सीट पर खुद लड़ना चाहती थी और 2 सीट कांग्रेस को देना चाहती थी जबकि कांग्रेस 3 सीट चाहती थी. इस तरह एक सीट के चलते दोनों के बीच गठबंधन नहीं हो सका और सभी सातों सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही.दिल्ली में भले ही कांग्रेस के पास एक भी न विधायक हो और न एक भी सांसद. इसके बावजूद कांग्रेस को कम से कम दो सीटों पर अपनी उम्मीदें दिख रही हैं. दक्षिण पूर्वी और दूसरी सीट उत्तर पूर्वी सीट है. हाल में हुए एमसीडी चुनाव में मुस्लिम वोटरों का झुकाव कांग्रेस की तरफ नजर आया था. कुछ मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस के पार्षद जीतकर आए थे. ऐसे में कांग्रेस को इन इलाकों से उम्मीद है और वो किसी भी सूरत में दिल्ली की सभी सीटें आम आदमी पार्टी के भरोसे नहीं छोड़ना चाहेगी, क्योंकि ऐसा करके भविष्य के लिए अपने सियासी आधार को नहीं खोना चाहेगी.आम आदमी पार्टी ने पंजाब और दिल्ली के बदले राजस्थान और मध्य प्रदेश छोड़ने की बात की है. इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. आम आदमी पार्टी का दोनों ही राज्यों में कोई खास आधार नहीं है. 2018 विधानसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो आम आदमी पार्टी को मध्य प्रदेश में 0.7 और राजस्थान में 0.4 फीसदी वोट मिले थे. दोनों ही सूबे में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी. हालांकि, पिछले साल मध्य प्रदेश में AAP अपना एक मेयर बनाने में जरूर सफल रही, पर राजस्थान में कुछ खास नहीं कर सकी.वहीं, 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों ही राज्यों में अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही थी. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के चलते साल 2020 में कांग्रेस ने सत्ता गवां दी थी जबकि राजस्थान में गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता पर काबिज है. कांग्रेस दोनों ही राज्यों की सत्ता में अपनी वापसी की उम्मीदें लगा रखी है. ऐसे में AAP के चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस के लिए कितना नुकसान होगा यह कहना मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है.आम आदमी पार्टी ने 2024 के चुनाव के लिए कांग्रेस के सामने गठबंधन का जो फॉर्मूला रखा है, उस कांग्रेस के लिए स्वीकार करना मुश्किल दिख रहा है. इसकी वजह यह है कि कांग्रेस पंजाब और दिल्ली का न तो पूरा मैदान छोड़ेगी और न ही एमपी और राजस्थान में उन्हें सियासी स्पेस देना चाहेगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी जिस जमीन पर खड़ी है, वो कभी कांग्रेस की हुआ करती थी।

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