अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने गठबंधन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हुए हैं. कांग्रेस ने अपने साथियों का विस्तार करते हुए UPA को INDIA गठबंधन में बदल दिया तो वहीं बीजेपी ने भी 40 के लगभग दलों को अपने साथ जोड़कर NDA के कुनबे को बड़ा कर लिया. विपक्षी दलों की एकजुटता और एक लोकसभा सीट से विपक्ष से एक उम्मीदवार उतारने के विपक्षी गठबंधन के ऐलान से 2024 में बीजेपी भी संभावित चुनौती को लेकर सतर्क होते हुए तैयारी में जुटी है.बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में NDA के उम्मीदवारों को भी बीजेपी की कड़ी चयन प्रक्रिया और कसौटी से गुजरना होगा।

यानि बीजेपी अपने सहयोगियों को गठबंधन में चुनाव के लिए जो सीटें देगी उन सीटों पर गठबंधन के उम्मीदवारों की परख और फीडबैक भी लेगी.दरअसल बीजेपी लोकसभा चुनाव में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती इसलिए इस बार लोकसभा सीटवार न सिर्फ अपनी पार्टी के जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश के लिए कई लेवल पर फीडबैक ले रही है और सर्वे करा रही है, बल्कि पार्टी लोकसभा की उन सीटों पर भी उतनी ही मेहनत कर रही है जहां से फिलहाल बीजेपी के सहयोगी दलों के सांसद हैं या जहां से सहयोगी दल 2024 के लिए दावा ठोक रहे हैं.25 साल पहले जब से NDA गठबंधन बना है तबसे ही बीजेपी ने उम्मीदवारों के चयन के मामले में अपने साथियों को पूरी छूट दे रखी थी. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल से लेकर नरेंद्र मोदी के दौर में भी 2014 और 2019 में NDA के घटक दलों ने सीट को लेकर ही बीजेपी के साथ विचार विमर्श किया और एक बार सीट मिल जाने के बाद उन्होंने अपनी मर्जी से अपने उम्मीदवारों का चयन किया था. नतीजा ये हुआ कि सहयोगी दलों द्वारा या तो उन सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में परिवारवाद चला या पैसे समेत अन्य फैक्टर उम्मीदवारों के चयन में हावी रहे.सूत्रों का कहना है कि इस बार चूंकि बीजेपी के लिए एक-एक सीट महत्वपूर्ण हो गई है, इसलिए बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए यह तय किया है कि पार्टी लोकसभा सीट मांगने वाले अपने घटक दलों से संभावित उम्मीदवारों का नाम मांगेंगी और जीतने की संभावना और राज्य के राजनीतिक माहौल के मुताबिक फैसला करेगी. सूत्रों का कहना है कि बीजेपी का देश की सभी 543 सीटों पर सर्वे और फीडबैक का काम निरंतर चल रहा है. ऐसे में सहयोगी दल लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए जिन सीटों की मांग करेंगे, उन पर सहयोगी दलों से उम्मीदवार के नाम के साथ उसके जीतने का आधार और संभावना भी पूछेगी.अगर घटक दलों के बीच किसी सीट और उम्मीदवार के नाम पर पेंच फंसेगा तो ऐसे हालात में जीतने की संभावना के आधार पर बीजेपी आलाकमान मामले को सुलझाने में मदद करेगा और अंतिम फैसला बीजेपी का ही होगा. बीजेपी सूत्रों का ये भी कहना है कि कोई जरूरी नहीं कि पार्टी अपने सभी 38 सहयोगी दलों को लोकसभा चुनाव में लड़ने के लिए सीट दे. बीजेपी सिर्फ राज्यों में प्रभाव रखने वाले और जीत के समीकरण में फिट बैठने वाले सहयोगियों को ही सीट देगी और बाकी सहयोगियों को राज्यों के चुनाव में सीट का वादा देकर संतुष्ट करेगी।

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