उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (SP) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच दूरियां कम हुई. साथ ही मुलायम सिंह यादव का जब निधन हुआ तब वे मैनपुरी लोकसभा सीट से सांसद भी थे. ऐसे में मैनपुरी सीट खाली हुई और उपचुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को जीत मिली. इसके बाद शिवपाल यादव ने अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का विलय भी सपा में कर दिया. इस विलय के बाद साढ़े छह साल से परिवार में जो दूरियां बढ़ी थी वो और कम होने लगी.डिंपल यादव की जीत के बाद ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव की पार्टी का अपनी पार्टी में विलय करने की घोषणा की थी. शिवपाल यादव पिछले छह बार से मैनपुरी की जसवंतनगर विधानसभा सीट से विधायक हैं. डिंपल यादव की जीत में जसवंतनगर सीट का एक बड़ा योगदान रहा. माना जाता है कि इसी जीत से खुश होकर शिवपाल यादव की पार्टी का सपा में विलय हुआ. डिंपल यादव के मैनपुरी में चुनाव जीतने के बाद चाचा शिवपाल का सम्मान बढ़ा था.शिवपाल यादव के विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर में डिंपल यादव को 164916 वोट मिले थे. मैनपुरी लोकसभा की पांच विधानसभा सीटों में से डिंपल यादव को सबसे ज्यादा वोट जसवंतनगर से मिला. इसके बाद अखिलेश यादव की करहल विधानसभा से डिंपल यादव को वोट मिला।
जसवंतनगर विधानसभा में 392000 से अधिक वोटर हैं तो वहीं करहल विधानसभा के कुल वोटरों की संख्या 373000 से ज्यादा है. इन दोनों सीटों पर वोट के अंतर की बात करें तो डिंपल यादव को जसवंतनगर में रघुराज से 106000 से अधिक वोट मिले तो वहीं करहल में 75000 से अधिक वोट प्राप्त हुए यानी शिवपाल यादव की विधानसभा से डिंपल यादव को अधिक वोट मिले. कहा जाता है कि यहीं से अखिलेश यादव का सॉफ्ट कॉर्नर चाचा शिवपाल के लिए जगा.2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के पहले सपा कुनबे में बढ़ी दूरियां 2022 चुनाव के पहले कम होना शुरू हुई. हालांकि, रिश्तों में पुराने मिठास नहीं दिख पाई. प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव ने साप के साथ गठबंधन तो किया लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें जसवंतनगर के अलावा कोई सीट नहीं दी. कार्यकर्ताओं में दोनों दलों के एक साथ आने के बाद जोश तो बढ़ा लेकिन अलग-अलग समय पर शिवपाल यादव को उचित सम्मान न मिल पाने की बात कहते हुए कार्यकर्ता निराश भी दिखे. विधानसभा चुनाव खत्म हो जाने के बाद भी अखिलेश यादव को लेकर यह कहा गया कि उन्होंने शिवपाल यादव को उचित सम्मान नहीं दिया. शिवपाल यादव अलग-अलग समय पर इशारों ही इशारों में यह बात भी कह गए. इस बीच शिवपाल यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की थी.प्रसपा के सपा में विलय होने के बाद शिवपाल यादव को पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया. हालांकि, उनके साथ 13 दूसरे लोग भी राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए. इस पद पर शिवपाल यादव के अलावा आजम खान, स्वामी प्रसाद मौर्य, इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर, अवधेश प्रसाद, इंद्रजीत वर्मा जैसे नेता शामिल हैं. सपा में विलय के दौरान शिवपाल यादव को कई महत्वपूर्ण पद देने की चर्चा चली लेकिन महासचिव बनाने के अलावा कोई और दायित्व उन्हें नहीं मिला. चर्चा में शिवपाल यादव को पार्टी दफ्तर में एक कमरा मिलने की भी बात कही गई थी लेकिन वह भी अब तक नहीं मिला.सपा में अपनी पार्टी का विलय करने के बाद शिवपाल यादव ने एक बार फिर से कैडर को मजबूत करने की कवायद शुरू की है. जनवरी के आखिरी दिनों में महासचिव का पद मिलने के बाद उन्होंने पिछले छह महीने में राजनीतिक और व्यक्तिगत यात्राओं के साथ पूरे प्रदेश में कैडर के लोगों से मुलाकात की. उन्होंने जौनपुर में पूर्व डीजीपी के भाई की श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुए तो वहीं आजमगढ़ पहुंचकर कार्यकर्ताओं की समीक्षा बैठक भी ली. अपने पूर्वांचल दौरे के दौरान शिवपाल यादव बलिया भी गए, जहां कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए उन्होंने कहा कि इस बार इंडिया गठबंधन यूपी में 50 सीटें जीतने वाला है.व्यक्तिगत और सामाजिक निमंत्रणों के सहारे शिवपाल यादव यूपी के बाकी क्षेत्रों में भी कई दफे जा चुके हैं. सपा की ओर से शुरू किए गए कार्यकर्ता शिविरों में भी शिवपाल यादव ने पहुंचकर कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी. सपा ने गोला गोकर्णनाथ से अपने कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत की थी. उन्होंने गोला गोकर्णनाथ के बाद नैमिषारण्य और फिर बांदा के कार्यकर्ता शिविर में पहुंच कर कार्यकर्ताओ को ट्रेन किया. आगामी दिनों में वो फतेहपुर और फिरोजाबाद में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविर में जाकर ट्रेनिंग देने वाले हैं.शिवपाल यादव के सपा कैंप में आने के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें फिलहाल सम्मान तो दे दिया है पर अब शक्ति की तलाश है. एक राजनेता को सम्मान और शक्ति दोनों बराबरी से चाहिए होती है. अखिलेश यादव ने उन्हें सम्मान तो दे दिया है पर उनके पास अपनी पुरानी शक्तियां नहीं हैं. एक समय में सपा में शिवपाल यादव भी शक्ति का एक केंद्र होते थे. तमाम नेता उनके आशीर्वाद पाने को लालायित रहते थे. मौजूदा स्थिति में यह भी कहा जा रहा है कि शिवपाल यादव ठीक तरीके से अपने कार्यकर्ताओं को सपा के कैडर में एडजस्ट नहीं करा पा रहे हैं.यूपी नगर निकाय चुनावों से लेकर सपा की कार्यकारिणी लिस्ट तक की बात की जाए तो शिवपाल कुनबे से जुड़े लोगों में असंतुष्टि नजर आई है. निकाय चुनाव के दौरान किसी भी नगर निगम में शिवपाल यादव अपने प्रत्याशी नहीं लड़ा पाए थे. हालांकि, नगर पंचायत और पालिकाओं में एक-दो परसेंट उनकी बात रखी गई थी. हाल ही में जारी हुई प्रदेश कार्यकारिणी की लिस्ट में 171 लोगों में से सिर्फ छह लोग ही शिवपाल गुट के रहे.शिवपाल यादव इस समय अपने बेटे आदित्य यादव के राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं. 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान भी शिवपाल यादव, आदित्य को किसी सीट से लड़ाना चाहते थे लेकिन तब सपा से उनकी बात नहीं बन पाई थी. आदित्य यादव मौजूदा समय में इटावा कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष हैं. इसके पहले वह पीसीएफ के चेयरमैन भी रह चुके हैं. आगामी चुनावों में शिवपाल यादव किसी सेफ तरीके से आदित्य को सदन तक पहुंचाने की चाह में लगे हैं. इन तमाम पहलुओं से यह समझ जा सकता है कि शिवपाल यादव जो जमीन पर अच्छी पकड़ रखते हैं, कार्यकर्ताओं के बीच में जिनकी पैठ है, लोग जिन्हें अपना नेता मानते हैं, उनको अगर सपा में कुछ शक्तियां मिल जाएं तो पार्टी को सामान्य से अधिक बढ़त दिलवा सकते हैं।