पश्चिमी यूपी का मुजफ्फरनगर राजनीति के केंद्र बिंदु में रहता है. मुजफ्फरनगर लोकसभा से पश्चिमी यूपी में बीजेपी के खिलाफ जयंत की तैयारियों को अखिलेश ने झटका दिया है. जयंत के गढ़ मुजफ्फरनगर में अखिलेश यादव ने लोकसभा प्रभारी घोषित कर खेला कर दिया है. अब ये चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर जयंत और अखिलेश में महासंग्राम हो सकता है.मुजफ्फरनगर की सियासी रणभूमि में सपा और आरएलडी में बड़ी सियासी जंग हो सकती है. सपा मुखिया अखिलेश यादव के एक फैसले ने आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी के गढ़ में खेला कर डाला है. इससे जयंत चौधरी ही नहीं बल्कि आरएलडी के नेता और कार्यकर्ता भी गुस्से में हैं. अखिलेश यादव ने जिन लोकसभा सीटों पर लोकसभा प्रभारी घोषित किए हैं उनमें सबसे ज्यादा चर्चा पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर हो रही है. यहां से सपा ने हरेंद्र मलिक को लोकसभा प्रभारी घोषित कर जयंत के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

सपा के नेता मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट बेहद अहम मानकर सबसे मजबूत दावा ठोक रहें हैं और साथ ही ये कहकर भी डैमेज कंट्रोल कर रहें हैं कि बीजेपी को हराएंगे और अखिलेश जयंत प्रत्याशी पर आखिरी फैसला लेंगे.दरअसल साल 2019 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरएलडी मुखिया रहे चौधरी अजीत सिंह बीजेपी के संजीव बालियान से चुनाव हार गए थे. इस हार की टीस आज भी जयंत के दिल में एक कांटे की तरह चुभती है. जयंत हर कीमत पर इस सीट को खोना नहीं बल्कि पाना चाहते हैं लेकिन अखिलेश ने मुजफ्फरनगर सीट पर हरेंद्र मलिक को प्रभारी बनाकर जयंत को झटका दिया है. सबसे बड़ी बात ये है जयंत ही नहीं बल्कि आरएलडी का हर नेता इस सीट को जीतने के लिए हर कोशिश कर रहा है. आरएलडी के नेताओं का कहना है कि चौधरी अजीत सिंह टूटे धागों को जोड़ने और एकता का संदेश लेकर चुनाव लडने गए थे, लेकिन जो सपना अजीत सिंह के जाने के बाद अधूरा रह गया जयंत उसे इस बार पूरा करके दम लेंगे.पश्चिमी यूपी में ये चर्चा जोर पकड़ रही है कि जब सपा आरएलडी में गठबंधन है तो फिर जयंत से पूछे बिना मुजफ्फरनगर लोकसभा प्रभारी कैसे घोषित कर दिया गया, जबकि बागपत को इस घोषणा से अछूता रखा गया. अखिलेश यादव को जब ये मालूम है कि मुजफ्फरनगर पर जयंत का दावा मजबूत है फिर यहां हरेंद्र मलिक को लोकसभा प्रभारी घोषित कर जयंत क्या संदेश देना चाहते हैं. बीजेपी के नेता सपा आरएलडी में दिख रही भविष्य की इस तकरार पर निशाना साध रहे हैं कि जनता का आशीर्वाद उनके साथ है ही नहीं फिर मुजफ्फरनगर और या कोई और सीट क्या फर्क पड़ता है.बता दें कि निकाय चुनाव में जयंत और अखिलेश में कई सीटों पर तकरार रही और इसके बाद आए नतीजे सबके सामने हैं. अब मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर फिर जयंत और अखिलेश में बड़े टकराव के संकेत मिल रहें हैं. साल 2014 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से ही पश्चिमी यूपी का सियासी समीकरण बीजेपी के पक्ष में और आरएलडी के खिलाफ आया था. जयंत इसी मुजफ्फरनगर से 2024 में नई संजीवनी तलाश रहें हैं, लेकिन ऐसे में अखिलेश के हरेंद्र मलिक दाव ने न सिर्फ जयंत के लिए चुनौती और मुश्किल खड़ी कर दी हैं बल्कि बड़े महासंग्राम के संकेत भी दे दिए हैं. अब अखिलेश अपना फैसला बदलेंगे या जयंत चौधरी का फैसला अंतिम होगा, यही गठबंधन का भविष्य तय करेगा।

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