देवरिया जाने से पहले अखिलेश यादव अपना होमवर्क कर रहे हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने अति पिछड़ी जाति के नेताओं की बैठक बुलाई. बंद कमरे में हुई इस बैठक में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने अगड़े बनाम पिछड़े का एजेंडा सामने रखा. बहाना तो जातिगत जनगणना का रहा. लेकिन इसी बहाने अखिलेश यादव ने देवरिया हत्याकांड को लेकर गैर यादव पिछड़ी जाति के नेताओं का मन पढ़ने की कोशिश की.बता दें कि देवरिया के फतेहपुर गांव में जमानी विवाद में 6 लोगों की मौत हो गई है. मरने वालों में एक यादव बिरादरी का था, जबकि बाकी 5 लोग एक ही ब्राह्मण परिवार के थे. घटना के बाद से ही इलाके में तनाव है. बीजेपी के स्थानीय नेता ब्राह्मण परिवार के साथ हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के लोग यादव समाज के समर्थन में हैं. अखिलेश यादव 16 अक्टूबर को देवरिया जा रहे हैं. जहां अगले ही दिन प्रेम चंद्र यादव का शांति पाठ है।
किसी भी पार्टी का कोई भी बड़ा नेता इस हत्याकांड से जुड़े किसी भी पक्ष से अब तक मिलने नहीं गया है. जिस दिन ये घटना हुई थी, सीएम योगी आदित्यनाथ तो बस घंटे भर दूर गोरखपुर में ही थे.देवरिया के बीजेपी सांसद रमापति राम त्रिपाठी भी इस झगड़े से दूर रहे हैं. रूद्रपुर के स्थानीय बीजेपी विधायक जय प्रकाश निषाद ने भी अब तक इस विवाद से दूरी बनाए रखा है. इसी सीट से विधायक रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह का भी स्टैंड अब तक यही रहा है. ऐसे में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के देवरिया जाने के पीछे की रणनीति क्या है? अखिलेश यादव इसी बहाने ओबीसी पॉलिटिक्स के अपने फार्मूले को पूर्वांचल के इस हिस्से में आजमा लेना चाहते हैं.यूपी में बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस, अपना दल, निषाद पार्टी, सुहेलदेव समाज पार्टी से लेकर समाजवादी पार्टी का अपना- अपना बेस वोट बैंक है. हाल के कुछ सालों में बीजेपी ने अपना सामाजिक फार्मूले ऐसा बना लिया है कि वो अपराजेय हो गई है. समाजवादी पार्टी का बेस वोट मुस्लिम और यादव रहा है, लेकिन इतने भर से पार्टी का भला नहीं हो पा रहा है. देवरिया जाकर अखिलेश अब अपने वोट बैंक का विस्तार करने की कोशिश में हैं. वह इस मान्यता को भी तोड़ना चाहते हैं कि यादव के साथ बाकी पिछड़ी जातियां नहीं जुड़ सकती हैं.इन जातियों पर सपा का फोकसवहीं राजनीति के जानकारों का मानना है कि यादव समाज के वर्चस्व के कारण अति पिछड़ी जातियां उनसे दूर रहती हैं. इसलिए अखिलेश का फोकस अब निषाद, मल्लाह, बिद, निषाद, कश्यप, मांझी जैसी छोटी- छोटी जातियों पर है. वैसे पिछले विधानसभा चुनावों में उन्होंने छोटी-छोटी जातियों का नेतृत्व करने वाली पार्टियों के साथ गठबंधन किया था. पिछला यूपी चुनाव हारने के बाद ही इन पार्टियों ने अखिलेश का साथ छोड़ दिया. इसीलिए अखिलेश इस बार अपनी पार्टी में ही इन बिरादरी के नेताओं को आगे बढ़ाने के फार्मूले पर काम कर रहे हैं.अखिलेश यादव को लगता है कि देवरिया कांड के बाद इलाके के पिछड़ी जाति के लोग ब्राह्मणों के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं. उनका प्रयास इस लड़ाई को अगड़ा बनाम पिछड़ा बनाने की है. वैसे तो देवरिया में ब्राह्मण वोटरों का दबदबा रहा है. लेकिन पूर्वांचल के इस इलाके में निषाद भी हैं फिर यूं कह लें कि मल्लाह बिरादरी का वोट निर्णायक माना जाता है. निषाद अति पिछड़ी जाति से आते हैं. इनकी मांग रही है कि इन्हें एससी कोटे से आरक्षण मिले. बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी इसी इलाके से आते हैं।