मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की पटना में बैठक करा चुके हैं और अब इससे भी बड़ी बैठक बेंगलुरू में होने की उम्मीद के साथ वहां जाने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच तेजस्वी यादव पर चार्जशीट, बिहार में ट्रांसफर-पोस्टिंग विवाद, मंत्री-आईएएस विवाद, राजद-जदयू तनातनी को देखते हुए नीतीश के स्टैंड को लेकर सस्पेंस भी कम नहीं।

ऐसे में भाजपा की तैयारी तेज हो गई है। लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव की भी। लेकिन, भाजपा की राह भी आसान नहीं। उसे चाचा-भतीजा सुलहनामे की तैयारी करनी थी, अब पार्टी के पास कुशवाहा-कुशवाहा की पंचायत भी लग गई है। दोनों पर काम जल्दी करना होगा।पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान की बनाई लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) उनके निधन के कुछ ही समय बाद टूट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके रहते भाजपा ने बिहार की 40 में से छह सीटें लोजपा को दी थी। बिहार की 40 में से 39 सीटें भाजपा-गठबंधन को मिलीं। भाजपा ने 17 में 17, जदयू ने 17 में 16 और लोजपा ने छह की छह सीटें जीती थीं। विधानसभा चुनाव 2020 में जनता दल यूनाईटेड (JDU) के साथ लोजपा की ठन गई।

इस तनातनी में रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने नीतीश के खिलाफ चिराग का साथ नहीं दिया। चिराग ने एनडीए में रहते हुए गठबंधन के प्रमुख घटक जदयू के खिलाफ प्रत्याशी दिए और परिणामों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू तीसरे नंबर की पार्टी रह गई। जदयू के भाजपा से अलग होने की शुरुआत यहीं से हुई। जदयू ने जनादेश से उलट जाते हुए एक बार फिर राजद के साथ सरकार बनाई। जदयू के अलग होने के बावजूद चिराग को तत्काल साथ में लाना भाजपा के लिए संभव नहीं हो पा रहा था, क्योंकि नीतीश की बात सही साबित हो जाती। अब चिराग के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की पूरी संभावना बन गई है, जबकि टूटकर बने लोजपा (रामविलास) के नेताओं-कार्यकर्ताओं की नजर में चिराग सीएम मैटेरियल हैं। अब चिराग अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल होंगे तो लोजपा मूल के खाते से राष्ट्रीय लोजपा के सर्वेसर्वा उनके चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस से उनका मेल कराना भाजपा की मजबूरी भी है। मजबूरी इसलिए कि चिराग 2019 की तरह ही छह सीटों पर लोजपा (रामविलास) के लिए दावा कर रहे हैं और भाजपा यह मानकर चल रही है कि वह लोजपा की सीटें थीं। लोजपा (रामविलास) या राष्ट्रीय लोजपा की नहीं। छह सीटों से ज्यादा देने के लिए भाजपा तैयार नहीं है। इसके अलावा दिवंगत रामविलास पासवान के नाम पर मिलने वाले वोटों का बंटवारा हुआ तो फायदा दूसरे उठा सकते हैं, इसलिए भी भाजपा दोनों का मेल चाहती है। इसके लिए चाचा-भतीजे की जल्द ही एक बैठक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सामने होने की उम्मीद है। इसी बैठक में हाजीपुर पर भी फैसला होगा, क्योंकि रामविलास पासवान के निधन के बाद इस सीट पर उनके भाई पारस सांसद बने, जबकि चिराग ने पिता की इस सीट पर दावा ठोक रखा है।

बिहार में एक और खबर पहुंच चुकी है कि अबतक लालू-नीतीश के आसपास माने जा रहे नागमणि मंगलवार को अमित शाह से दिल्ली में न केवल मिल चुके हैं, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल होने की घोषणा भी कर दी है। ऐसी ही घोषणा हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा (HAM) की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और नीतीश कुमार मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले संतोष कुमार सुमन उर्फ संतोष मांझी भी कर चुके हैं। संकट यहां मांझी से नहीं, बल्कि कभी एनडीए में रहे और अमित शाह से पहले ही मिल चुके उपेंद्र कुशवाहा से है। उपेंद्र कुशवाहा काराकाट (बिक्रमगंज) लोकसभा सीट से लड़ते हैं और नागमणि ने भी इसी सीट पर दावा ठोका है। यह एनडीए की सीट रही है, मतलब उपेंद्र भी 2014 में इसी सीट पर एनडीए से जीते थे और महागठबंधन में जाकर 2019 में यहीं से हारे थे। काराकाट के तहत छह विधानसभा सीटों में से पांच पर राजद का कब्जा है, लेकिन लोकसभा सीट एनडीए के खाते में है। नागमणि भी कुशवाहा हैं और उनके इस सीट पर दावा ठोकते ही कुशवाहा-बनाम-कुशवाहा की पंचायत तय हो गई है। उपेंद्र कुशवाहा ने शाह से मुलाकात अप्रैल में की, लेकिन औपचारिक रूप से एनडीए में शामिल अबतक नहीं हुए। इस मामले में नागमणि तेज निकले और मुलाकात के साथ ही घोषणा भी कर दी। इसलिए अब दोनों के दावों को देखते हुए इस लोकसभा सीट के लिए शाह को दोनों कुशवाहा के बीच भी एक पंचायत करनी ही होगी।

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