परिवार में दो खर्चे बेहद अहम होते हैं, एक पढ़ाई का और दूसरा दवाई का. हर इंसान इन दोनों खर्च को कम करने के लिए काफी मशक्कत करता है लेकिन दोनों ही खर्चों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. अगर घर में कोई बीमार हो तो परिवार को हर महीने दवाइयों पर होने वाला खर्च मारता है लेकिन दवाइयों की खरीदारी अगर ठीक जगह से की जाए तो उसमें आपको काफी अंतर मिल सकता है. अब आप सोचेंगे कि वो कैसे?आपका ये जानना जरूरी है कि हर दवाई की MRP जो दवाई पर लिखी होती है वो फिक्स्ड नहीं होती, उसमें दवाई की डिस्ट्रीब्यूशन चेन का अलग-अलग हिस्सा शामिल होता है और ये कम या ज्यादा हो सकता है. यही वजह है कि समान दवाई दो अलग-अलग दुकानों पर अलग-अलग डिस्काउंटेड रेट्स में मिल सकती है. वहीं अगर आप उस दवाई की जेनेरिक दवा लेंगे तो वो आपको उससे भी कम दाम में मिलेगी लेकिन ये सारा गणित क्या है. कैसे किसी दवा का दाम तय होता है और कैसे अलग-अलग डिस्ट्रीब्यूशन चेन के जरिए कोई दवाई आप तक पहुंचती है आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में।आमतौर पर कोई ग्राहक तीन जगहों से दवाइयां खरीदता है, इसमें पहले नंबर पर है पास की कोई लोकल केमिस्ट की दुकान, उसके बाद बारी आती है केंद्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाले जन औषधि केंद्रों की और तीसरी जगह है दवाइयों की होलसेल मार्केट. इन तीनों जगहों पर दवाई के आपको अलग-अलग रेट्स मिलेंगे।दिल्ली के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. कंवलजीत सिंह बताते हैं कि जेनेरिक दवाओं में भी ब्रांडेड दवा के समान ही सॉल्ट होते हैं. ऐसे में ये दवाएं उतनी ही असरदार होती हैं जितनी कि ब्रांडेड दवाएं. इसलिए अगर डॉक्टर आपको कोई ब्रांडेड दवा लिखता भी है तो आप उसका सॉल्ट चेक करके उसी कंपोजिशन वाली जेनेरिक दवा भी खरीद सकते हैं. हालांकि अब सरकार की तरफ से कोई भी डॉक्टर ब्रांडेड दवा नहीं लिख सकता है उसको प्रिस्किप्शन पर सिर्फ जेनेरिक सॉल्ट लिखने की ही इजाजत है. ऐसा इसलिए है ताकि लोग सस्ते में जेनेरिक दवाएं खरीद सकें क्योंकि जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50 फीसदी तक सस्ती होती हैं. चूंकि इन दवाओं का प्रचार नहीं होता इसलिए लोग इसके बारे में कम जानते हैं और ज़्यादातर ब्रांडेड दवाओं को ही खरीदते हैं।

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