उत्तर प्रदेश विधानसभा से पारित होने के बाद विधानपरिषद में नजूल संपत्ति बिल लटक गया है. लोकसभा चुनाव के बाद ये तीसरा ऐसा मसला है जिस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विपक्ष के साथ अपनी ही पार्टी बीजेपी और सहयोगियों का विरोध झेलना पड़ रहा है. जिसके बाद सीएम योगी बैकफुट पर दिखाई दे रही हैं. इस विधेयक को अभी प्रवर समिति के पास भेजा गया है लेकिन इसके अटकने से एक बार फिर यूपी में ऑल इज वेल नहीं होने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने बुधवार को नजूल संपत्ति विधेयक को बुधवार को विधानसभा में रखा जो हंगामे के बीच विधानसभा से पारित हो गया. लेकिन, इस दौरान सपा-कांग्रेस समेत बीजेपी के कई बड़े नेता और विधायक भी इसके विरोध में नजर आए. इनमें एडीए के सहयोगी भी शामिल थे. इसके बाद जब इस विधेयक को विधानपरिषद में पेश किया गया, लेकिन एक रणनीति के तहत विधानपरिषद में अटका दिया गया. बताया जा रहा है कि विधेयक से नाराज कई विधायकों ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से मुलाक़ात की और इससे बीजेपी को नुकसान होने की आशंका जाहिर की, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी इस बात से सहमत दिखे. बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी और पूर्व मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने भी इस पर आपत्ति जताई.इस बीच कई बीजेपी विधायकों ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से भी मुलाकात की और इस बिल को रोकने की मांग की. जिसके बाद ये तय हुआ कि नजूल विधायक को विधान परिषद में रोका जाएगा. भूपेंद्र चौधरी ने सदन में खड़े होकर इस विधेयक पर आपत्ति जताई और इसे प्रवर समिति में भेजने को कहा. सहयोगी भी नाराज दिखाई दिएनजूल विधेयक पर बीजेपी विधायकों के साथ एनडीए के सहयोगी भी नाराज दिखे. कई मुद्दों पर योगी सरकार के साथ खड़े कुंडा से विधायक राजा भैया उर्फ रघुराज प्रताप सिंह भी इसका विरोध करते हुए कहा कि ये जनता के हित में नहीं है इससे लोग जमीन से बेदखल होंगे और उनके घर टूटेंगे. तो वहीं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने इसे जल्दबाजी में लिया फैसला बताया और इसे तत्काल वापस लेने की मांग की. कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर और कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने भी नजूल विधेयक का खुलकर विरोध किया और कहा कि अगर हम किसी को उजाड़ेंगे तो लोग हमें उखाड़कर फेंक देंगे.

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