उत्तर प्रदेश की विधान परिषद की इकलौती सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान सोमवार को कर दिया है. बीजेपी ने पूर्व विधायक बहोरनलाल मौर्य को विधान परिषद का प्रत्याशी बनाया है, जो मंगलवार को नामांकन दाखिल करेंगे. यह सीट स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के चलते खाली हुई थी. विधानसभा में विधायकों की संख्या के समीकरण को देखते हुए सपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है, जिसके चलते बहोरनलाल मौर्य का निर्विरोध जीतना तय माना जा है.सपा के मौर्य की एमएलसी सीट पर बीजेपी ने अपना मौर्य उम्मीदवार उतारा. स्वामी प्रसाद मौर्य के एमएलसी पद छोड़ने से रिक्त सीट पर भाजपा ने बहोरन मौर्य को प्रत्याशी बनाया. लोकसभा चुनाव में इस बार कुशवाहा, मौर्य, कुर्मी, कश्यप समाज का बड़ा हिस्सा सपा के साथ चला गया था. इसके चलते बीजेपी को उत्तर प्रदेश में तगड़ा सियासी झटका लगा है. बीजेपी 62 सीटों से घटकर 33 पर आ गई है और उसे 29 लोकसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. माना जा रहा कि 2024 के चुनाव में खिसके ओबीसी वोटों का विश्वास दोबारा से जीतने के लिए ही बीजेपी ने मौर्य समाज से आने वाले बहोरनलाल मोर्य को एमएलसी बनाने का फैसला किया.बहोरन लाल मौर्य बीजेपी के पुराने नेता हैं. बरेली की भोजीपुरा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. बहोरन लाल मौर्य पहली बार साल 1996 विधायक बने और दूसरी बार 2017 में भोजीपुरा से विधायक रहे. वह 1997 में राजस्व राज्य मंत्री रहे हैं. साल 2022 में बीजेपी ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह चुनाव हार गए थे. सपा के शहजिल इस्लाम ने उन्हें परास्त किया था. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई विधान परिषद सीट पर बीजेपी ने बहोरन लाल मौर्य को उतारकर आगामी चुनाव के सियासी समीकरण साधने का दांव चला है.बीजेपी को यूपी में लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अब फिर से पिछड़े वर्ग को साधने की कवायद तेज की है ताकि खिसकते सियासी जनाधार को बचाया जा सके. 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर चुनाव लड़ा था. पीडीए फॉर्मूले के जरिए बीजेपी को करारी मात देने में सफल रहे हैं. लोकसभा चुनाव में 10 कुर्मी, 5 मल्लाह, 5 मौर्य-शाक्य को प्रत्याशी बनाया था. इनमें से 7 कुर्मी सपा से सांसद चुने गए हैं तो 3 मौर्य-शाक्य चुने गए जबकि 2 निषाद सांसद बने हैं.सपा ने दलित समुदाय में सबसे बड़ा भरोसा पासी समुदाय पर किया था और 5 पासी सांसद सपा से चुने गए हैं. ओबीसी के जाट, राजभर और लोधी समुदाय पर भी फोकस किया था, जिसमें से पार्टी कुछ हद तक सफल रही. हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को साधने का काम किया था. इसी सियासी समीकरण के बदौलत बीजेपी यूपी में 2014 और 2019 के लोकसभा के साथ-साथ 2017 तथा 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रही थी.उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने अपने सवर्ण वोटबैंक के साथ गैर-ओबीसी जातियों और गैर-जाटव दलितों के साथ मजबूत जातीय समीकरण बनाने में सफल रही. गैर-यादव ओबीसी और दलितों की कई जातियां भले ही सियासी परिस्थितियों के चलते बीजेपी के साथ पिछले चुनाव में खड़ी रही हों, लेकिन पार्टी का ये कोरवोट बैंक नहीं रही हैं. इसीलिए चुनाव दर चुनाव उनका सियासी मिजाज बदलता रहता है. अखिलेश यादव इस बात को 2022 के चुनाव के बाद भी समझ गए थे कि ओबीसी जातियों को एकजुट किए बिना बीजेपी को मात देना आसान नहीं होगा.अखिलेश ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले के तहत सपा तमाम ओबीसी जातियों को अपने साथ जोड़ने में काफी हद तक सफल रही है, जिसमें कुर्मी, मल्लाह, जाट, राजभर, लोध और मौर्य-शाक्य-सैनी-कुशवाहा जैसी जातियां शामिल हैं. दलितों में पासी, दोहरे, कोरी जातियों ने अहम रोल अदा किया. इसके चलते ही बीजेपी को यूपी में 29 लोकसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है और वोट शेयर भी 8 फीसदी घट गया है. इसीलिए बीजेपी 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई है. माना जा रहा है कि बहोरन लाल मौर्य को विधान परिषद भेजने के पीछे सपा के पीडीए फॉर्मूले में सेंध लगाने की रणनीति है।

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