पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी अलग-अलग तरह के प्रयोग कर रही है. पार्टी ने जहां एक तरफ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कई सांसदों को विधायक चुनाव के लिए मैदान में उतारकर सभी को हैरान कर दिया, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी तेलंगाना में 30 नवंबर को होने वाले चुनाव के लिए ओबीसी राजनीति पर प्रयोग कर रही है. पार्टी का यह प्रयोग अगर यहां सफल होता है तो इसे दूसरे राज्यों में भी लागू किया जा सकता है.दरअसल, तेलंगाना की कुल आबादी में ओबीसी और दलित का सामूहिक रूप से 68 प्रतिशत हिस्सा है. इसमें ओबीसी की बात करें तो वह 51 प्रतिशत और दलित 17 पर्सेंट हैं. भाजपा इन दोनों को एक साथ लुभाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी का यह प्रयोग कितना सफल होगा, ये तो 3 दिसंबर को ही साफ हो सकेगा, लेकिन इतना तय है कि इसने दूसरे दलों की परेशानी जरूर बढ़ा दी है।
तेलंगाना चुनाव में बीजेपी विपक्ष की जाति जनगणना की मांग का जवाब देने के लिए पूरे देश में ओबीसी सर्वे कराने की भी योजना बना रही है. ओबीसी को लुभाने के लिए भाजपा लगातार घोषणाएं कर रही है और यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस और बीआरएस ओबीसी विरोधी हैं. 27 अक्टूबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सूर्यापेट में एक रैली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि अगर राज्य विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री ओबीसी समुदाय से बनाया जाएगा.कांग्रेस पर हमला करते हुए, भाजपा ने कहा कि सबसे पुरानी पार्टी, जो जनसंख्या आधारित अधिकारों का मुद्दा उठा रही है, ने राज्य विधानसभा चुनावों के लिए घोषित कुल 114 उम्मीदवारों में से ओबीसी समुदाय के केवल 23 लोगों को टिकट दिया है. बीजेपी नेता कांग्रेस को घेरते हुए कहते हैं कि ओबीसी राज्य की आबादी का 51 पर्सेंट है, लेकिन सबसे पुरानी पार्टी ने उन्हें धोखा देते हुए महज 20 पर्सेंट ओबीसी को ही टिकट दिया है.कर्नाटक विधानसभा चुनावों में हार का सामना करने के बाद भाजपा किसी भी कीमत पर तेलंगाना विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है और यही कारण है कि उसने मतदाताओं को उनकी जातियों के आधार पर लुभाना शुरू कर दिया है. भाजपा का मानना है कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव जीतने से उसके “मिशन साउथ” को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे पार्टी को केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में फायदा होगा।