उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा का सियासी विकल्प बनने के लिए चंद्रशेखर आजाद हरसंभव कोशिश में जुटे हैं. कांशीराम ने दलित राजनीति की प्रयोगशाल पश्चिमी यूपी के बिजनौर को बनाया था और मायावती पहली बार यहीं से जीतकर संसद पहुंची थी. बसपा की सियासी आधार और जमीन पर चंद्रशेखर की नजर है और मिशन-2024 का आगाज वो दलितों के मसीहा कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस से करने जा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने बिजनौर जिले की नगीना सीट को चुनाव है, जहां 9 अक्टूबर को एक बड़ी रैली करते चुनावी हुंकार चंद्रशेखर भरेंगे और सियासी संदेश देने की कवायद करते नजर आएंगे?बता दें कि कांशीराम बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक रहे हैं और अस्सी के दशक में देश में दलित समुदाय के बीच राजनीतिक चेतना जगाने का काम किया है. ऐसे में यूपी की सियासत में दलित राजनीति मजबूती के साथ स्थापित हुई, जिसके सहारे ही मायावती चार बार सूबे की मुख्यमंत्री बनी।

मायावती ने सत्ता में आने के बाद बहुजन के बाद सर्वजन नीति पर कदम बढ़ाते ही बसपा का सियासी ग्राफ गिरना शुरू हुआ तो दोबारा से उभर नहीं पाया. बसपा का वोटबैंक खिसककर यूपी में 13 फीसदी के करीब पहुंच चुका है.मायावती भी उत्तर सियासी तौर पर बहुत ज्यादा जमीनी स्तर पर सक्रिय नजर नहीं आ रही हैं. 2022 के चुनाव के बाद उन्होंने कोई भी रैली नहीं की है. इतना ही नहीं बसपा प्रमुख ने प्रदेश के किसी भी जिले का दौरा भी कभी करती नजर नहीं आ रही हैं, जिसके पार्टी का कोर वोटबैंक दलित समुदाय कशमकश की स्थिति में है. यही वजह है कि भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद अब कांशीराम की सियासी विरासत के सहारे दलितों के दिल में जगह बनाने और बसपा की सियासी जमीन को हथियाने का प्लान बनाया है।

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