जमीन की लड़ाई में एक दूसरे के आमने सामने खड़े भारत और चीन अब अंतरिक्ष में युद्ध जीतने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं. ये दौर आधुनिकता का है और इस होड़ में वही देश जीतेगा जो सबसे ज्यादा आधुनिक और ताकतवर होगा. इसलिए, भारत ने आकाश के साथ अंतरिक्ष की भी ताकत बनने का फैसला किया है.भारतीय वायुसेना की चाहत है कि स्पेस में भी चीन के बराबरी की उसकी धाक हो और इसके लिए भारत ने एक रोड मैप भी तैयार कर लिया है. इसके तहत वायु सेना स्पेस के सिविल और मिलिट्री पहलुओं का पूरी तरह आंकलन कर रही है. साथ ही साथ, उसका इंफ्रास्ट्रक्चर और सैद्धांतिक फ्रेमवर्क भी भारत ने तैयार कर लिया है. अपनी नई भूमिका के लिए वायुसेना एक नए नाम के साथ सामने आएगी.डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस एजेंसी के सहयोग से वायु सेना अंतरिक्ष की तमाम जरूरतों को देखते हुए अपने कर्मचारियों को बड़े पैमाने पर ट्रेनिंग देगी. इसके तहत हैदराबाद में स्पेस वॉर ट्रेंनिंग कमांड स्थापित की जा रही है।
इसी संस्थान के जरिए स्पेस लॉ की ट्रेनिंग के लिए अलग से कॉलेज भी बनाया जाएगा, जहां अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून में दक्ष प्रोफेशनल फोर्स तैयार किए जाएंगे.अंतरिक्ष फोर्स बनाने के लिए वायुसेना ने स्पेस उपग्रह की एक बड़ी फ्लीट तैयार करने का भी फैसला किया है. इस योजना के तहत 31 उपग्रह वायु सेना के लिए छोड़े जाएंगे. इनका उपयोग कम्युनिकेशन वेदर प्रिडिक्शन, नेवीगेशन, रियल टाइम सर्विलांस जैसी गतिविधियों के लिए किया जाएगा. एयर फोर्स ने तय किया है कि इन उपग्रहों के लॉन्च के लिए होने वाली खर्च का 60% हिस्सा वह खुद वहन करेगी.इनके लॉन्च में इसरो और डीआरडीओ मुख्य भूमिका निभाएंगे. एयर फोर्स ने डीआरडीओ से ऐसे वायुयान पर भी काम करने का आग्रह किया है जो स्पेस में समान रूप से उड़ान भर सके. एयरोस्पेस से जुड़ी निजी कंपनियों को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव है. ये भारत की अंतरिक्ष में मिलिट्राइजेशन की शुरुआत है. भविष्य की लड़ाइयां जमीन, समुद्र, आसमान के साथ ही साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्र में भी लड़ी जाएंगी. भारत सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष में अपनी रक्षात्मक और आक्रामक दोनों ताकतों को बढ़ाने पर अब काम कर रहा है.विस्तारवादी चीन अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने के लिए हर तरह के कदम उठा रहा है. चीन अपनी सेना को आधुनिक बनाने और अमेरिका तक को पीछे छोड़ने की फिराक में है. वहीं भारत के लिए नए खतरे भी पैदा कर रहा है. चीनी सेना के अभी तक चार ब्रांच हैं जिसमें थल सेना, नौसेना, वायु सेना और रॉकेट फोर्स हैं. अब चीन की नियर स्पेस कमांड पांचवीं ताकत के रूप में काम करेगी. हालांकि यह अभी डेवलपिंग फेज में है.चीन की नियर-स्पेस कमांड ने कथित तौर पर घातक हाइपरसोनिक हथियारों से लैस दुनिया का पहला निकट-अंतरिक्ष कमांड बनाया है. यह चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की पांचवीं ताकत के रूप में काम करेगा. हालांकि, अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि इसे कब स्थापित किया गया था लेकिन बताया जा रहा है कि अभी इसपर काम चल रहा है.अंतरिक्ष में अमेरिका, चीन और रूस आगे हैं. स्पेस के क्षेत्र में चीन काफी कुछ कर चुका है. ऐसे में, भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए स्पेस अगला युद्धक्षेत्र है. इस क्षेत्र में चीन दूसरे देशों से ज्यादा बढ़त चाहता है. विशेषज्ञों की एक टीम ने कहा है कि नियर स्पेस एक बड़ी प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र बन गया है, जिससे भविष्य के युद्धों के नतीजे तय हो सकते हैं.सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, चीन का निकट-अंतरिक्ष कमांड आधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस होगा और यह दुश्मन देशों की महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने में सक्षम होगा. सुपर-एडवांस्ड निकट अंतरिक्ष कमांड, चीन को धरती पर किसी भी लक्ष्य पर तेज गति से हमला करने की शक्ति प्रदान करेगा जो भारत के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है. अंतरिक्ष कमांड, युद्ध के समय में दूसरे देश के रॉकेट लॉन्चिंग सिस्टम को निशाना बनाएगा, जिससे सामने वाले को एंटी सेटेलाइट मिसाइलें दागने में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।