लालू यादव वह नामजिसे देश के बच्चा-बच्चा जानता है भ्रष्टाचार मामले में सजा होने के बावजूद भी,बिहार ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में इनकी लोकप्रियता कभी कम नहीं हुई..1990 से 2017 के कुछ महीने छोड़ दें तो करीब 15 साल तक लालू यादव का कुनबा सत्ता से बाहर रहा लालू प्रासद यादव में ऐसी क्या खूबियां हैं जो उन्हें बिहार की राजनीति में इतनी मजबूत बनाती है पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और बिहार के सीएम नीतीश कुमार तक लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के राज के ‘राज’ को हर रोज खोलते रहे लेकिन लालू यादव पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
आखिरकार नीतीश कुमार को लालू परिवार ने ही संकट से उबारा नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक जीवन में जब-जब कमजोर हुए तब-तब लालू यादव ने उन्हें साथ दिया लालू यादव की छवि सामाजिक न्याय के मसीहा के रूप में अब तक बनी हुई है,लालू यादव ने पिछड़ी और दलित जातियों को जो सम्मान दिया उसके लिए वे अब भी याद किए जाते हैं। सच पूछिए तो लालू के लिए,पिछड़ी जातियों के लोग काफी मायने रखते हैं। पिछड़ी जाति के लोगों के लिए उन्होंने जो सामाजिक न्याय का ढांचा खड़ा किया उसी की फसल उनका परिवार उनके ही नाम पर अब तक काट रहा है।
बाबरी विध्वंस के बाद तो वे मुसलमानों के भी मसीहा बन गये थे। उनके साथ मुसलमान जुड़े और आज भी मुसलमान हितों के लिए उनकी नजर में आरजेडी के अलावा,कोई दूसरी पार्टी नहीं है। लालू अक्सर कहते थे कि पिछड़ी और दलित जातियों को हम स्वर्ग तो नहीं दे पाये पर स्वर जरूर दे दिया है। अगर किसी को लालू यादव की राजनीति समझनी हो तो उसे विकास जैसे रटे-रटाए शब्द से बाहर निकलना होगा। दरअसल में लालू यादव का राजकाज स्कूल अस्पताल सड़क बिजली जैसी सुविधाएं मुहैया कराने या ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए था ही नहीं। उनके शासन में तो तीन ही चीजें प्रमुख थीं- बिहार के सामंती समाज में जातिवाद की जड़ों को हिलाना, पिछड़ी जाति के लोगों को सामाजिक न्याय देना और 1990 के दशक के दौरान राममंदिर के नाम पर हो रही हिंसा से मुस्लिम समुदाय को संरक्षित करना। यही तीन चीजें आरजेडी की अब तक ताकत बनी हुई हैं।साल 1990 से 2005 के बीच बिहार में कानून व्यवस्था चरमरा गई थी। बिहार अराजकता का पर्याय बन चुका था। लालू के शासन को हाईकोर्ट ने भी जंगलराज कह दिया था।
फिर 2005 में अजय देवगन की फिल्म अपहरण आई तो लोग उसे बिहार के तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों को समझने के लिए सटीक उदाहरण मानने लगे। फिर जातीय समीकरण को साधते हुए नीतीश कुमार ने लव-कुश वाला समीकरण को मजबूत किया और 2005 में कुर्मी-कुशवाहा जातियों की वोट के सहारे नीतीश कुमार सत्ता में काबिज हुए।
नवंबर 2005 में उन्होंने बिहार की बागडोर संभाली। भाजपा के साथ गठबंधन वाली सरकार बनी। नीतीश कुमार ने बिहार की अराजकता वाली छवि को बदलने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली। मीडिया में खबरें भी आने लगीं कि लालू ने बिहार को बर्बाद किया तो नीतीश ने उसे ठीक कर दिया लेकिन सत्ता में रहते हुए जो सामाजिक काम लालू यादव ने किया वह नीतीश कुमार आज तक नहीं कर पाए लालू यादव ने “मुख्यमंत्री के तौर पर और डंके की चोट पर दलितों के पास गए। उन्होंने अपने बंगले का दरवाजा गरीब और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए खोल दिया। उस समय ऐसा मानिए की ऊंची जाति के लोगों के लिए यह ऑफिस का अपमान था लेकिन लालू घर-घर में उस समय चर्चा का विषय बन गए थे।
लालू यादव के समर्थन में एक रिपोर्ट में लिखा गया था- “मेरे हिसाब से जो अराजकता लालू के राज में थी वो पुरानी व्यवस्था को हिलाने के लिए जान-बूझकर फैलाई गई थी। ऊंची जाति का अपमान और पुरानी व्यवस्था का बहिष्कार यह सब लालू की राजनीतिक और सामाजिक रणनीति का हिस्सा था।” ऊंची जातियों के लंबे समय तक दमन के बाद पिछड़ी जातियों का दिमागी तौर पर मजबूत होना शायद लालू यादव की राजनीति का कमाल था। शायद इसलिए बिहार की जनता ने लालू यादव को आज भी वोट देने में संकोच नहीं करती है तब हीं तो आज भी बिहार की सत्ता में लालू यादव की पार्टी राजद अहम भूमिका में बनी हुई है।