यूपी: एक साक्षात्कार के दौरान बीआरपी चीफ आर पी मौर्य जी झूठे इतिहास का पोस्टमार्टम किया है और कहा है कि राजनीतिक षड्यंत्र के तहत अखंड भारत के जनक चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का नाम मिटाया गया। हर भारतीय नागरिक के लिए यह जानना बेहद जरुरी है कि ग्रैंड ट्रंक रोड(Grand Trunk Road) को भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे पुरानी, लंबी एवं प्रमुख सड़क के रुप में जाना जाता है। यह सड़क बांग्लादेश के चटगांव से शुरू होकर भारत, पाकिस्तान से होते हुए अफगानिस्तान के काबुल में जाकर समाप्त होती है।”वर्तमान के इन 4 देशों को मिलाकर इसकी कुल लंबाई 3337 कि.मी. है। लेकिन, अगर अपने आसपास के 10 लोगों से पूछेंगे तो उनमें से 9 लोग बताएंगे कि ग्रैंड ट्रैंक रोड को शेरशाह सूरी ने बनवाया था। क्योंकि, उन्होंने अपनी इतिहास की किताब में यही पढ़ा हुआ है।
जबकि, यह बिल्कुल एक गलत एवं भ्रामक तथ्य है। असलियत यह है कि भारत की इस सबसे लंबी एवं प्रसिद्ध सड़क को शेरशाह ने नहीं बल्कि 2350 वर्ष पहले सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था। हमारे भारतीय इतिहासकारों ने शेरशाह के महिमामंडन हेतु उसे GT ROAD का निर्माता घोषित कर दिया। जबकि, ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि GT ROAD शेरशाह (1540-1545) से पहले 320 ईसा पूर्व से ही भारत में मौजूद है। उस समय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल था।सम्राट चन्द्रगुप्त के शासनकाल में यह सडक “उत्तरापथ” के नाम से जाना जाता था। उत्तरपथ का अर्थ है ‘उत्तर दिशा की ओर जाने वाला मार्ग’। यह मार्ग गंगा नदी के किनारे की बगल से होते हुए, गंगा के मैदान के पार, पंजाब के रास्ते से तक्षशिला को जाता था। भारत के पूर्वी तट पर समुद्री बंदरगाहों के साथ समुद्री संपर्कों में वृद्धि की वजह से मौर्य साम्राज्य के काल में इस मार्ग का महत्व बढ़ा और इसका व्यापार के लिए उपयोग होने लगा। बाद में, उत्तरपथ शब्द का प्रयोग पूरे उत्तर मार्ग के प्रदेश को दर्शाने के लिए किया जाने लगा।हाल में हुआ संशोधन यह दर्शाता है कि मौर्य साम्राज्य के कालावधि में भारत और पश्चिमी एशिया के कई भागों और हेलेनिस्टिक दुनिया के बीच थलचर व्यापार, उत्तर-पश्चिम के शहरों मुख्यतः तक्षशिला के माध्यम से होता था। तक्षशिला, मौर्य साम्राज्य के मुख्य शहरों से, सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुडा हुआ था। मौर्य राजाओं ने पाटलिपुत्र (पटना) को ज़ोडने के लिए तक्षशिला से एक राजमार्ग का निर्माण किया था।सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानी राजनयिक मेगस्थनीज की आज्ञा से इस राजमार्ग के रखरखाव के लिए अपने सैनिकों को विविध जगहों पर तैनात किया था। आठ चरणों में निर्मित यह राजमार्ग, पेशावर, तक्षशिला, हस्तिनापुर,कन्नौज, प्रयाग, पाटलिपुत्र और ताम्रलिप्त के शहरों को ज़ोडने का काम करता था।इस सड़क के किनारे छायादार पेड़ लगवाए, राहगीरों के लिए सरायें और पीने के लिए पानी की व्यवस्था के लिए कुएं/जलाशय खुदवाए।वास्तव में तथाकथित लेखकों ने अधिकांश प्राचीन धरोहरों को अपने नाम से बनवाया हुआ प्रचारित करने का धूर्ततापूर्ण कृत्य करते हुये झूठा इतिहास गढ़ने का ही काम किया है और जहां वे ऐसा करने में असफल हुये उन मंदिरों और धरोहरों को तोड़कर उनपर अपना घटिया निर्माण थोपने का काम किया है। बात चाहे मथुरा की हो या काशी विश्वनाथ की या फिर अढ़ाई दिन का झोपड़ा हो, ये सभी ऐसे ही उदाहरण हैं।
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य निर्मित उत्तरापथ की भी यही कहानी है। शेरशाह सूरी ने भी इसका नाम बदल कर “सड़क-ए- आजम” कर दिया और इतिहासकारों ने इसे “सड़क-ए-शेरशाह”/बादशाही सड़क आदि कह कर पुकारना शुरू कर दिया और इसका वर्तमान नाम “ग्रैंड ट्रैंक रोड” अंग्रेजों का दिया हुआ है। और हाँ, जिस शेरशाह सूरी के बारे में इतिहास की किताब में कसीदे पढ़े गए हैं । वो महज 4 साल (1540-1545) तक ही सत्ता में रहा था लेकिन उतने छोटे अंतराल में भी वो उत्तरापथ का नाम बदलना नहीं भूला।शेरशाह सूरी एक पश्तून अफगानी था शायद इसीलिए इरफान हबीब और रोमिला थापर सरीखे कुंठित वामपंथी इतिहासकारों ने शेरशाह जैसे संकुचित मानसिकता के लोगों को भारत का निर्माणकर्ता बता कर महिमामंडित कर दिया। इस मार्ग के निर्माण के बाद शेर शाह सूरी (16वीं सदी), मुग़ल साम्राज्य (16वीं सदी), ब्रिटिश साम्राज्य (1833-1860 ) ने अपने तरीके से नाम बदला और प्रयोग/मरम्मत किया।अब समय आ गया है कि कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त हबीब और थापर जैसे द्वारा लिखे झूठे इतिहास को अपने शिक्षा पाठ्यक्रम से बाहर कर कूड़ेदान में डाला जाये और ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर वास्तविक गौरवशाली इतिहास को पढ़ाया जाये। आजकल की भ्रष्ट, षड्यंत्रकारी, झूठी और निकम्मी सरकार से कोई उम्मीद नहीं है।