जमीनी स्तर से दिल्ली तक बीआरपी के सर्वे के मुताबिक भारत की मेडिकल व्यवस्था पूरी तरह जर्जर है, मौत का कुंआ सा है सिर्फ टाइमपास हो रहा है। इनके भरोसे रहे तो आपके मरीज की मौत निश्चित है । इलाज तो चलता है फॉर्मेल्टी पूरी करने के लिए लेकिन इलाज पूरा होगा या नहीं इसकी कोई न तो गारंटी है और न ही जिम्मेदारी।रिपोर्ट तीन तीन महीने बाद मिलती है तब मरीज रहे या जाए इसकी कोई चिंता नहीं।
चारो तरह लूट और शोषण का माहौल है। दिल्ली के एम्स में तो कभी लाइन टूटती ही नही, आज का कोटा पूरा होते ही अगले दिन की लाइन लग ही जाती है। बेचारे रात रात भर मच्छरों के बीच रहकर इलाज कैसे करवा सकते है, जिनको स्वस्थ होना चाहिए वे बीमार हो रहे है।

एम्स की इमरजेंसी का बुरा हाल है, इमरजेंसी में लाइन लगती है। 100 से 200 मरीज महेशा लाइन में लगे रहते है, कुछ तो नंबर आने से पहले मृतक को घर लेकर लौटने को मजबूर होते है। फ्रंट डेस्क पर कोई डॉक्टर नही, छोटे छोटे बच्चे जो अप्रेंक्टिसिप में लगे है वही घूम घूम कर मरीज को झूठी तसल्ली देते रहते है। जिनका लिंक होता है या दलालों के माध्यम से पैसे देकर जुगाड लग जाता है वह डायरेक्ट अंदर हो जाता है। कुछ को तो दर्द को दवा देकर वापस भेजा जा रहा तो कुछ को जिनके लिंक है या घूस लेकर एडमिट कर लिया जाता है वह भी केवल उनकी संतुष्टि के लिए, लेकिन कोई स्पेशल इलाज उन्हे भी नही मिल पाता है।

यही ठीक स्थिति लखनऊ मेडिकल कॉलेज की है यहां तो डॉक्टर लोग अपना अपना प्राइवेट अस्पताल चला रहे है और अंधाधुंध पैसे कमा रहे है जब कोई मरीज इलाज के लिए आता है डॉक्टर के दलाल मरीज को बहला फुसला कर किसी तरह उसके प्राइवेट अस्पताल में पहुंचा रहे है, अपने लैब से जांच और अपने मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने पर मजबूर रहे है और मुंह मांगे पैर वसूल रहे है।

अयोध्या मेडिकल कॉलेज की बात करें तो एक मरीज दो हफ्ते से भर्ती था, वहां के डॉक्टर उसकी वॉमिटिंग नही रोक सके, प्राइवेट अस्पताल में ले जाते ही वह मात्र 24 घंटे के अंदर स्वस्थ हो गया। ऐसे अनगिनत उदाहरण हम दे सकते है और साबित भी कर सकते है, जो इस निकम्मी सरकार की धूर्तता का प्रमाण है।आप जिस भीअस्पताल में जाओगे वही पर भारत के जुमलेबाज प्रधानमंत्री का आभा ऐप तो कभी आयुष्मान ऐप डाउनलोड करते रहो, मिलना मिलाना कुछ नही, प्रधानमंत्री इलाज नहीं कर रहे सिर्फ मरीज की मौत का रिकॉर्ड बना रहे है।

एक बात तो तय है कि यदि आप एक आम इंसान है और आर्थिक रूप से कमजोर है तो आपका या आपके सगे संबंधियों का बिना इलाज के जान गवानी ही पड़ेगी । कोई भी सरकारी अस्पताल चाहे वह दिल्ली का एम्स ही क्यों न हो, मरीज को इलाज से न तो संतुष्ट कर सकता है और न ही उसकी जान बचाने की जिम्मेदारी ले सकता है। प्रैक्टिकली आपने देखा भी होगा अगर आपके नजदीकी कोई किसी बीमारी से पीड़ित रहा हो तो आपको इन सरकारी तंत्रों के चलते निराशा के अलावा कुछ नही मिला होगा।

यदि आपके पास पैसा है तो आप प्राइवेट अस्पतालों में प्रॉपर इलाज लेना मजबूरी हो जाती है, क्योंकि जो परेशानी आम इंसान झेल रहा है वह एक समृद्ध इंसान नही झेल सकता है। या फिर आप नेता मंत्री हो जिसके एक आदेश पर सभी डॉक्टर टूट पड़े। नेता मंत्री बनना आम इंसान के भाग्य में तो है नही।75 सालों की सरकार ने आम जनता दिया क्या है, दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर किया है। अशिक्षा और पूर्ण जानकारी न होने के कारण अधिकांश आम नागरिक जहां पर उपलब्ध सुविधाओं से वंचित रह जाते है वही पर भ्रष्टाचार और शोषण के शिकार भी होते है।ऐसे में इस निकम्मी सरकार से कोई उम्मीद नही है इसे जितनी जल्दी उखाड़ फेंको वही राष्ट्रहित और समाजहित में बेहतर है।

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