पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को बिहार में जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली आधा दर्जन याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही इस गणना का रास्ता साफ हो गया है। बिहार में जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण दो अगस्त से एक बार फिर से शुरू हो रहा है। इसी बीच, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने राज्य के जिला अधिकारियों को जाति गणना से संबंधित एक पत्र जारी किया है। जारी पत्र में पाठक ने जिला अधिकारियों को निर्देश दिया है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों को केवल जाति आधारित जनगणना के काम में ही लगाया जाय। जाति गणना के अलावा उनसे किसी भी प्रकार का प्रशासनिक कार्य न लिया जाए, ताकि इस दौरान स्कूलों को शिक्षकों की कमी से न गुजरना पड़े।इसके पहले केके पाठक ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों को किसी भी प्रशासनिक कार्य में नहीं लगाया जाना चाहिये।
इस फैसले के पीछे पाठक का तर्क था कि शिक्षकों के प्रशासनिक कार्यों में लगाये जाने से बच्चों की शिक्षा में प्रभावित होती है। हालांकि, हाईकोर्ट के जाति गणना से रोक हटाने के आदेश के बाद अपर मुख्य सचिव पाठक अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा है।बिहार में जाति आधारित जनगणना दो चरण में हो रही है। पहले फेज के सर्वेक्षण का काम पूरा हो चुका है। दूसरे फेज के दौरान पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इस गणना के लिये पूरे राज्य में 5 लाख 19 हज़ार कर्मचारी लगाए गए हैं, जिसमें शिक्षकों के अलावा आंगनबाड़ी सेविका और जीविका दीदी शामिल हैं।एक परिवार का सर्वे करने में गणना कर्मचारी को लगभग आधे घंटे लगते हैं। परिवार की संख्या के अलावा परिवार के सभी सदस्यों की जानकारी ली जा रही है। उम्र नाम के अलावा परिवार में बाहर रहने वाले सदस्यों की भी सूचना एकत्र की जा रही है। एक फॉर्म में लगभग 15 सदस्यों की डिटेल भरी जा सकती है। बिहार में जातीय गणना का प्रथम चरण 7 से 22 जनवरी तक हुआ। दूसरे चरण की शुरुआत 15 अप्रैल से की गई, जो 15 मई, 2023 तक खत्म करने का लक्ष्य था। हालांकि, पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह कहा गया था कि जातिगत जनगणना का कार्य राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने बिहार में चल रहे जातिगत गणना और आर्थिक सर्वेक्षण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया था।