बिहार के सरकारी विद्यालयों में शिक्षण समेत तमाम व्यवस्थाओं में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने के साथ ही विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने ‘कोचिंग संस्थाओं’ पर शिकंजा कसने की कवायद शुरू की थी। नतीजतन कुछ हद तक शिकंजा कसा। हालांकि वह कार्रवाई माकूल रूप से धरातल पर नहीं दिखी, जैसा विभाग का निर्देश था। वैसे विभाग खुश और संतुष्ट है कि व्यवस्था में सुधार और कोचिंग पर लगाम लगाने से ही स्कूलों में बच्चों की संख्या 50 से बढ़ाकर 92 फीसदी तक पहुंच गई है।अपर मुख्य सचिव पाठक भी कोचिंग संस्थाओं को बंद करने के पक्ष में नहीं थे, सिर्फ इन्हें सरकार के कुछ निर्देशों को फॉलो कराने की कोशिश कर रहे थे,अन्यथा उन्हें कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी।

दरअसल, सरकारी स्कूल के समय पर ही कथित तौर पर कोचिंग भी संचालित होते हैं। इस कारण कोचिंग करने के चक्कर में विद्यार्थी स्कूल में क्लास नहीं कर पाते हैं। इसे अपर मुख्य सचिव ने गंभीरता से लिया था। स्कूल और कोचिंग के समयावधि में बदलाव लाने का प्रयास शुरू किए थे। बाद में इसमें मिली सफलता की बात खुद विभाग ने ही स्वीकार की थी और इसकी पुष्टि के लिए स्कूलों में बच्चों की बढ़ी संख्या का हवाला दिया था।शिक्षा विभाग को जिलों से कोचिंग संस्थानों की रिपोर्ट मिली है। आंकड़ा से यह पता चला है कि किस जिला में कितने कोचिंग हैं और उनमें कितने छात्र-छात्र पढ़ते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कोचिंग की संख्या और पढ़ रहे बच्चों की संख्या दोनों मामले में पटना जिला अव्वल है। सूबे में कुल 12761 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। इनमें 9,94,647 छात्र-छात्र पढ़ रहे हैं। अररिया जिला में 266, अरवल में 90, औरंगाबाद में 218, बांका में 201, बेगूसराय में 636, भागलपुर में 295, भोजपुर में 297, बक्सर में 144, दरभंगा में 565, पूर्वी चंपारण में 604, गया में 623, गोपालगंज में 333, जमुई में 238, जहानाबाद में 40, खगड़िया में 145, किशनगंज में 243, कैमूर में 171, कटिहार में 577, लखीसराय में 102, मधुबनी में 428, मुंगेर में 90, मधेपुरा में 233, मुजफ्फरपुर में 242, नालंदा में 368, नवादा में 164, पटना में 1017, पूर्णिया में 598, रोहतास में 126, सहरसा में 522, समस्तीपुर में 581, शिवहर में 92, शेखपुरा में 152, सारण में 491, सीतामढ़ी में 357, सुपौल में 395, सिवान में 297, वैशाली में 284 और पश्चिमी चंपारण में 536 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं।

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