आज (15 अप्रैल 2024) चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन है जो माता कालरात्रि को समर्पित किया गया है. ये दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भक्त मां के आशीर्वाद के लिए उपवास रखकर मां कालरात्रि की विधि-विधान से पूजा करते हैं. देवी कालरात्रि की पूजा करने से उपासक को कई आशीर्वाद और सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मां दुर्गा का ये रूप दुष्टों का विनाश करने के लिए जाना जाता है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, मां दुर्गा के कालरात्रि ने असुरों का वध करने के लिए रूप लिया था।मां कालरात्रि को लेकर यह भी मान्यता है कि इनकी पूजा करने से भूत-प्रेत या बुरी शक्ति का डर नहीं सताता है. भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से जानते हैं कि मां कालरात्रि की पूजा विधि,मुहूर्त,मंत्र,भोग,आरती क्या है?
इस तरह से करें मां कालरात्रि की पूजा:
नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां की पूजा अन्य दिनों की तरह ही कर सकते हैं लेकिन मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए सबसे उपर्युक्त समय रात्रि का माना जाता है.मां कालरात्रि की पूजा करने के लिए पूजा करने वाले स्थान को अच्छे से साफ करें.पूजा स्थल को स्वच्छ करने के साथ खुद भी साफ सुथरे कपड़े पहनें.इस दिन लाल कपड़े पहने तो बेहतर होगा.इसके बाद पूजा स्थल पर लाल कपड़ा बिछाकर मां कालरात्रि की तस्वीर या मूर्ति को स्थापित करें।माता की विधि-विधान से पूजा करने के बाद मां को रातरानी के फूल चढ़ाएं.मां कालरात्रि को तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति जलाएं.मां कालरात्रि को खुश करने के लिए दुर्गा चालीसा का पाठ करें.पूजा करने के बाद भोग चढ़ाने के लिए गुड़ अर्पित करें.भोग लगाने के बाद मां की कपूर या दीपक से आरती उतारें.इसके साथ ही लाल चंदन की माला से माता के मंत्रों का जाप करें।
मां कालरात्रि की पूजा के मंत्र:
- ॐ कालरात्र्यै नम:
- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा.
- ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
मां कालरात्रि का भोग:
मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है।
मां कालरात्रि की आरती:
कालरात्रि जय-जय-महाकाली.
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा.
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा.
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली.
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा.
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी.
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा.
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी.
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें.
महाकाली मां जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह.
कालरात्रि मां तेरी जय॥
मां कालरात्रि की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षस थे। इन राक्षसों ने लोकों में आतंक मचा रखा था। इनके आतंक से सभी देवी-देवता परेशान हो गए। ऐसे में देवी-देवता भगवान शिव के पास गए और समस्या से बचाव के लिए कोई उपाय मांगा। जब महादेव ने मां पार्वती से इन राक्षसों का वध करने के लिए कहा, तो मां पार्वती ने मां दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।लेकिन जब वध के लिए रक्तबीज की बारी आई, तो उसके शरीर के रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। क्योंकि रक्तबीज को वरदान मिला हुआ था कि अगर उनके रक्त की बूंद धरती पर गिरती है, तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में दुर्गा ने अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके पश्चात मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया कर मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।