बसपा ने लोकसभा चुनावों को लेकर अपनी नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके अंतर्गत पहले की मंडल स्तरीय व्यवस्था को समाप्त करते हुए पूरे उत्तर प्रदेश को नौ सेक्टर में बांट दिया गया है। सभी सेक्टरों में दो से तीन पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी। सभी पदाधिकारी अपने लोकसभा क्षेत्रों से संबंधित रणनीति बनाने के लिए स्वतंत्र होंगे और अपने क्षेत्र से संबंधित चुनावी गतिविधियों के लिए सीधे मायावती को रिपोर्ट करेंगे। पार्टी सूत्रों के अनुसार, बहुजन समाज पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना पारंपरिक आधार वोट बनाए रखने की है। इसके लिए उसे दलितों-महादलितों के साथ मुसलमानों का साथ पाना है। पार्टी किसी सांप्रदायिक विभाजन को रोकने के लिए अभी से हर सेक्टर में विशेष पदाधिकारियों की नियुक्ति करेगी जो उसके मतदाताओं के बीच पार्टी की स्थिति को साफ करने का काम करेंगे। बसपा नेता ने निचले स्तर पर संगठन की गतिविधियों को तेज करने के लिए सीधे पहल की है और कई योजनाओं के सहारे अपने कोर मतदाताओं तक पहुंचने और उन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है। जब से भाजपा ने दलित-महादलित मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं के सहारे उनमें दखल देने की कोशिश की है, बसपा का यह वोट बैंक उससे टूटा है। मायावती की सबसे बड़ी चुनौती इसी वोट बैंक को अपने साथ लाना है। यही कारण है कि मायावती का सबसे ज्यादा जोर अपने इन्हीं मतदाताओं की ‘घर वापसी’ कराने पर है। यूपी की राजनीति में मुसलमान मतदाताओं का विशेष असर रहता है। मुसलमान अब तक कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच बंटते रहे हैं। पसमांदा मुसलमानों के मुद्दे के सहारे इस बार भाजपा भी इन मतदाताओं पर डोरे डालने की कोशिश कर रही है। इससे सपा-बसपा की चुनौती बढ़ गई है। पिछले चुनावों में ये वर्ग पूरी तरह समाजवादी पार्टी के साथ चला गया था जिससे वह भाजपा को सत्ता से दूर रखने में सफल हो सके। नई परिस्थितियों में कांग्रेस मुसलमान मतदाताओं के बीच राष्ट्रीय स्तर पर सबसे मजबूत विकल्प बनकर उभरी है। ऐसे में बसपा को इस वोट बैंक को अपने साथ जोड़कर रखने की चुनौती बढ़ गई है।
मायावती ने समाजवादी पार्टी के उस बयान की भी कड़ी निंदा की है जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी के सर्वे को दूसरे मंदिरों के साथ जोड़कर आपत्तिजनक बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि हिंदुओं के कई मंदिर बौद्ध धर्म के मंदिरों को तोड़कर बनाए गए हैं। ऐसे में केवल ज्ञानवापी नहीं, बल्कि दूसरे मंदिरों का भी सर्वे होना चाहिए। बसपा नेता मायावती मानती हैं कि यह बयान बौद्ध समाज के लोगों को अपने पाले में लाने के लिए चला गया है। यही कारण है कि उन्होंने पुरजोर तरीके से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान का खंडन किया है और उसे राजनीति से प्रेरित बताया है। मायावती ने ट्वीट कर कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य लंबे समय तक भाजपा के साथ जुड़े रहे और तब उन्होंने कभी इस तरह की बयानबाजी नहीं की, लेकिन अब वे समाजवादी पार्टी में रहकर इस तरह के बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन बयानों से बौद्ध समाज के लोग बहकावे में नहीं आएंगे। उनका यह बयान भी दिखाता है कि बसपा अपना जनाधार बचाये रखने के लिए पूरी सतर्क है।