तमिलनाडु में कांग्रेस के प्रमुख सहयोगी दल द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (द्रमुक) पर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का जबर्दस्त राजनीतिक दबाव है। तमिलनाडु में हालांकि द्रमुक कमजोर हो गई है, फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पटना से लेकर अन्य क्षेत्रीय दलों के मुख्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं। इससे यह समझा जा सकता है कि द्रमुक अपनी मौजूदा राजनीतिक स्थिति से परेशान है। और इसका कारण यह है कि तमिलनाडु में भाजपा लगातार बढ़त बना रही है। तमिलनाडु में कांग्रेस अपने संगठन का विकास नहीं कर रही है, बल्कि पूरी तरह से द्रमुक पर निर्भर है। स्टालिन के तेजी से अपनी पकड़ खोने के पीछे क्या कोई खास वजह है? द्रमुक के वरिष्ठ नेता चुपचाप अपनी इस भावना को दूसरों के साथ साझा करते हैं।इससे ऐसा लगता है कि 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) और भाजपा गठबंधन बेहतर प्रदर्शन करेगा। अन्नाद्रमुक के पक्ष में जमीनी स्तर पर हलचल दिख रही है। राज्यपाल आरएन रवि और द्रमुक के मुख्यमंत्री स्टालिन के बीच तकरार जारी है, जबकि जनता का मानना है कि इस झगड़े से बचा जा सकता था। लेकिन द्रमुक द्वारा उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के प्रवासियों का मुद्दा उठाना और उन्हें पानी-पूरी बेचने वाला कहना भी तमिल जनता को रिझा नहीं पाया है। मतदाताओं को लगता है कि द्रमुक को परेशान करने के लिए नरेंद्र मोदी ने जान-बूझकर राज्यपाल आरएन रवि को तमिलनाडु भेजा है। तमिलनाडु में भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई कहते हैं, ‘हां, यह एक राजनीति है।

‘साथ ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अपना तमिलनाडु दौरा रद्द करने को यहां विपक्षी एकता की कमजोरी के तौर पर देखा गया। वहीं रणनीतिक रूप से भाजपा शीर्ष केंद्रीय मंत्रियों एवं नेताओं- राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, योगी आदित्यनाथ को तमिलनाडु के कई हिस्सों में दौरे पर भेज रही है। और प्रधानमंत्री मोदी बनारस तमिल संगमम के जरिये तमिलनाडु में भाजपा के लिए एक मजबूत आधार बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त बीते 28 मई को जिस तरह से नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंगोल को संसद में स्थापित किया, इन सबसे यही संकेत मिलता है कि मोदी दक्षिण चेन्नई या रामनाथपुरम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने पर भी विचार कर सकते हैं।नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि निर्मला सीतारमण और डॉ. एस जयशंकर क्रमशः कोयंबटूर और तिरुचिरापल्ली लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ें। इसलिए इन संयुक्त दृष्टिकोणों से तमिलनाडु में यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) और एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन), दोनों की लड़ाई दिलचस्प होगी। हाल के महीनों में सुपर स्टार रजनीकांत राजनीति से पीछे हट गए हैं, लेकिन विजय जैकब, अजित कुमार जैसे अन्य तमिल फिल्मी अभिनेता राजनीति में अपनी जगह बना रहे हैं। ऐसे में इन सबका राजनीति में प्रवेश द्रमुक को सत्ता विरोधी लहरों को दूर करने में काफी हद तक मदद करेगा।द्रमुक नेता एमके स्टालिन चाहते हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी आगामी लोकसभा चुनाव में हैट्रिक न बना पाएं। लेकिन द्रमुक पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी हमलावर है। द्रमुक के तीन या चार शीर्ष मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और कई देशों में बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग करने के आरोप हैं। ऐसे में जनता की नजरों में भी द्रमुक की छवि अच्छी नहीं है। इसके वरिष्ठ मंत्री सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय ने ‘नौकरी के बदले घूस लेने’ के कथित घोटाले में पिछले सप्ताह गिरफ्तार किया था। लेकिन जेल जाने से बचने के लिए चिकित्सा, राजनीतिक और कानूनी हथकंडे अपना करके वह अस्पताल में भर्ती हैं। द्रमुक अंदरूनी गुटबंदी से भी त्रस्त है। द्रमुक के अधिकांश मंत्री जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक से दल बदलकर आए थे। अब वे द्रमुक नेता स्टालिन पर हावी हो गए हैं।द्रमुक के प्रथम परिवार के सदस्य पार्टी और सरकार, दोनों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता, जो दूसरी पार्टी से दल बदलकर आए हैं, स्टालिन परिवार के इस अतिरिक्त प्रभुत्व को पसंद नहीं करते हैं। इसके अलावा द्रमुक हमेशा हिंदी विरोधी और उत्तर-भारतीय विरोधी नीति अपनाती रही है, जिसके चलते उत्तर भारतीय मतदाता द्रमुक को खारिज करते रहे हैं।ऐसे में एक मजबूत विपक्ष कैसे उभरेगा?

नीतीश कुमार की अवधारणा है कि लोकसभा चुनाव में 450 सीटों पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार खड़ा किया जाए, क्या यह ऐसे में संभव होगा? भले ही नीतीश कुमार के आमंत्रण पर विपक्षी नेताओं की पटना में शुक्रवार को बैठक हुई है, लेकिन अब भी विपक्षी नेताओं के बीच एकमत नहीं है और दुविधा की स्थिति बनी हुई है। भ्रम की इस स्थिति से द्रमुक परेशान है। दबाव में द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद रणनीतिक समाधान का विकल्प भी चुन सकता है। जाहिर है, द्रमुक कई संकटों से घिरा हुआ है, वह भी मुश्किल स्थिति में।द्रमुक के खिलाफ नरेंद्र मोदी के हमले को निश्चित रूप से वरिष्ठ द्रमुक नेताओं ने महसूस किया है। द्रमुक अब अलगाववाद की कहानी से केंद्र को नहीं डरा सकता। जयललिता और करुणानिधि शासन के बाद नए युवा मतदाता अब समाधान की तलाश में हैं। और उस खाली जगह को भाजपा के युवा नेता अन्नामलाई भर सकते हैं। तमिलनाडु में भाजपा जुलाई में राज्यव्यापी पदयात्रा शुरू करने की तैयारी में है। आधुनिक समय के बच्चे डिजिटल पहुंच चाहते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित नवाचार चाहते हैं, वे तुच्छ द्रविड़ राजनीति में फंसे नहीं रहना चाहते। हां, द्रविड़ विचारकों को लगता है कि डिजिटल दुनिया के साथ तमिलनाडु में बदलाव हो रहा है। द्रमुक इन जमीनी बदलावों से अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता।

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