आज चैत्र नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के छठें स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से धर्ण, काम, मोक्ष, अर्थ की प्राप्ति होती है। मां कात्यायनी की पूजा करने से जीवन की हर एक परेशानी दूर हो जाती है। आइए जानते हैं मां कात्यायनी की पूजा विधि, मंत्र, भोग, आरती सहित अन्य जानकारी…
मां कात्यायनी का स्वरूप:
मां कात्यायनी के स्वरूप की बात करें, तो वह काफी चमकीला और तेजमय है। उनकी चार भुजाएं है। जिसमें से बाएं ओर के ऊपर वाले भुजा तलवार और नीचे वाले में कमल का फूल है। इसके साथ ही दाएं ओर के ऊपर वाले हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाली नर मुद्रा में है। इसके साथ ही मां कात्यायनी सिंह की सवारी करती है।
मां कात्यायनी की पूजा विधि:
चैत्र नवरात्रि के हर दिन की तरह आज भी स्नान आदि करने साफ-सुथरे वस्त्र को धारण कर लें। इसके बाद पूजा आरंभ करें। सबसे पहले कलश की पूजा करें। इसके बाद मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के साथ मां कात्यायनी की पूजा आरंभ कर लें। मां को श्रृंगार करने के साथ माला, सिंदूर, कुमकुम, रोली, अक्षत चढ़ाने के साथ भोग में फल, मिठाई, शहद आदि चढ़ा दें। इसके साथ ही पान में 2 लौंग , बताशा, एक छोटी इलायची और एक रुपए का सिक्का रखकर चढ़ा दें। फिर घी का दीपक और धूप जाकर दुर्गा सप्तशती, मां कात्यायनी मंत्र, स्तुति, ध्यान, दुर्गा चालीसा आदि का पाठ करके अंत में आरती कर लें।
मां कात्यायनी को लगाएं ये भोग:
मां कात्यायनी को शहद काफी प्रिय है। इसलिए भोग में शहद जरूर चढ़ाएं। इससे वह प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
मां कात्यायनी का बीज मंत्र:
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
मां कात्यायनी आराधना मंत्र:
1- या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2-चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
मां कात्यायनी स्तोत्र पाठ:
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोच्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्मा परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
मां कात्यायनी कवच:
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
मां कात्यायनी की आरती:
जय-जय अम्बे जय कात्यायनी
जय जगमाता जग की महारानी
बैजनाथ स्थान तुम्हारा
वहा वरदाती नाम पुकारा
कई नाम है कई धाम है
यह स्थान भी तो सुखधाम है
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी
हर जगह उत्सव होते रहते
हर मंदिर में भगत हैं कहते
कत्यानी रक्षक काया की
ग्रंथि काटे मोह माया की
झूठे मोह से छुडाने वाली
अपना नाम जपाने वाली
बृहस्पतिवार को पूजा करिए
ध्यान कात्यायनी का धरिए
हर संकट को दूर करेगी
भंडारे भरपूर करेगी
जो भी मां को ‘चमन’ पुकारे
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।
मां कात्यायनी व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए मां भगवती की अधिक तपस्या की। उनकी तपस्या से मां भगवती प्रसन्न होकर महर्षि कात्यायन को दर्शन दिए। इस दौरान महर्षि ने उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट की। इसपर उन्होंने महर्षि को वचन दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार महिषासुर नाम के एक दैत्य का अत्याचार तीनों लोकों पर बढ़ता जा रहा था। ऐसा देख सभी देवी-देवता परेशान हो गए।तब त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव के तेज से देवी को उत्पन्न किया जिन्होने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। महर्षि के घर जन्म लेने की वजह से उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विशेष उपासना की। इसके पश्चात मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से छुटकारा दिलाया।