चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन आज 16 अप्रैल, मंगलवार के दिन है. इस दिन को अष्टमी या महाष्टमी के नाम से जाना जाता है. महाष्टमी के दिन मां महागौरी की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. माना जाता है कि मां महागौरी की पूजा करने पर राहू दोष का निवारण हो जाता है. महागौरी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के आठवें दिन पूजा होती है. इस दिन घरों में भक्त कन्याओं को भोजन भी करवाते हैं और बहुत से भक्त अष्टमी तक ही नवरात्रि की पूजा करते हैं।मां महागौरी के स्वरूप की बात करें मां की सवारी बैल को माना जाता है. माता की चार भुजाएं हैं और मां का स्वभाव शांत व शीतल कहा जाता है. मां महागौरी के एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कमल नजर आता है।मां महागौरी का प्रिय पुष्प रात की रानी को माना जाता है. मां के भोग की बात करें तो माता रानी को पूरी और हलवे का भोग लगाना बेहद शुभ होता है।

मां का ध्यान मंत्र:

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

माता महागौरी की ध्यान:

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

मां महागौरी की स्तोत्र पाठ:

सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

माता महागौरी की कवच:

ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥

मां महागौरी की आरती:

जय महागौरी जगत की माया.
जय उमा भवानी जय महामाया..
हरिद्वार कनखल के पासा.
महागौरी तेरा वहा निवास..
चंदेर्काली और ममता अम्बे.

जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे ..
भीमा देवी विमला माता.
कोशकी देवी जग विखियाता ..
हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा.
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ..
सती ‘सत’ हवं कुंड मै था जलाया.
उसी धुएं ने रूप काली बनाया..
बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया..
तभी मां ने महागौरी नाम पाया
शरण आने वाले का संकट मिटाया..
शनिवार को तेरी पूजा जो करता
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता..
‘चमन’ बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो.

नवरात्रि के आठवें दिन पढ़ें व्रत कथा:

मां महागौरी की दो व्रत कथा है। पहली कथा के अनुसार देवी महागौरी 16 वर्ष की अविवाहित कन्या हैं, जिन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई सालों तक कठोर तपस्या की थी। उनके त्वचा पर धूल जम गई जिससे वह काली दिखाई देने लगी थी। तब मां के इस कठोर तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी महागौरी को विवाह का वचन दियाय़ इस बाद जल से मां पार्वती के शरीर पर लगे धूल और मिट्टी को साफ किया गया। जिसका उनका रंग वापस सफेद हो गया। इस तरह मां का नाम महागौरी पड़ा।

दूसरी कथा के अनुसार शुंभ और निशुंभ नाम के दो राक्षस पृथ्वी पर तबाही मचाने लगे थे। जिसका अंत सिर्फ देवी ही कर सकती थीं। तब ब्रह्मा जी के सलाह पर भगवान शिव ने मां पार्वती की त्वचा का रंग काला किया। देवी पार्वती ने अपना रंग और रूप फिर से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। तब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें मानसरोवर में स्नान करने की सलाह दी। तब मां पार्वती की त्वचा मानसरोवर में स्नान करने से श्वेत हो गया। तभी माता के इस रुप को कौशिकी कहा गया।

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