बिहार में कांग्रेस के नेता शनिवार तक उत्साहित थे। रविवार को महाराष्ट्र में उलटफेर हुआ, तो भी ज्यादा परेशान नहीं थे। लेकिन, सोमवार को जब विपक्षी एकता के लिए होने वाली अगली बैठक के टलने का समाचार मिला तो बेचैन होने लगे। एक-दूसरे को कॉल लगाने लगे कि सही में ऐसा हो गया है क्या? वजह विपक्षी एकजुटता की कोशिश पर सवाल नहीं, बल्कि बिहार में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के विस्तार का है।
विस्तार लगातार टल रहा है और अब जब दो मंत्रीपद मिलने की पुष्टि होने के आधार पर नाम तय करने की जद्दोजहद चल रही तो यह बैठक टलने की सूचना आ गई।बिहार विधानसभा में कांग्रेस के 19 विधायक हैं। सरकार में संख्या बल के आधार पर चार विधायकों पर राजद-जदयू को एक मंत्रीपद मिला था। कांग्रेस उस समय आवाज नहीं उठा सकी थी या वह दब गई थी। लेकिन, कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने पदभार संभालते ही इसके लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस को कम-से-कम चार मंत्रीपद तो मिले ही। अभी दो मंत्रीपद है। मतलब, दो और बने। इस दो मंत्रीपद की मांग पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू में राजी भी बताए गए।
लेकिन राष्ट्रीय जनता दल नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव सहमत नहीं बताए गए। नीतीश ने तब गेंद तेजस्वी के पाले में कर दी। बात अटकी हुई थी। लेकिन, विपक्षी एकता के लिए पटना में हुई बैठक के दौरान दो पदों पर सहमति बनने की बात सामने आई। इसपर किसी ने औपचारिक बयान नहीं दिया है, सब कुछ उड़ते-उड़ते है।