प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 से 16 जुलाई के बीच फ्रांस के दौरे पर रहेंगे. हथियार सौदों के अलावा भी उनके इस दौरे के कई मायने हैं. प्रधानमंत्री आजकल मुस्लिम नेताओं, इस्लामिक विद्वानों और मौलानाओं से भी मिल रहे हैं. पिछले अमेरिकी दौरे के बाद, वापसी में वे जब मिस्र गए तो वहां कई मौलानाओं से भी मिले. इस मुलाकात के पीछे उनका मक़सद यह भी रहता है, कि वे अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को काउंटर कर सकें. संभवतः संसद के इसी सत्र में समान नागरिक संहिता (UCC) बिल आए तो कहीं ऐसा नहीं हो कि विरोधी दल विश्व मंच पर उनकी छवि मुस्लिम विरोधी बताकर प्रचारित करें. अगला लोकसभा चुनाव अब अधिक दूर नहीं इसलिए वे यह नहीं चाहते होंगे कि मुसलमान उनके प्रति शत्रु भाव रखें. इसलिए वे सऊदी अरब समेत दुनियाभर के मुस्लिम देशों से अपना भातृभाव बनाये रखना चाहते हैं. किंतु पाकिस्तान अपनी चिर शत्रुता के चलते उनके विरुद्ध मुस्लिम देशों के कान भरता रहता है।ऐसे में उनका फ्रांस दौरा अहम है. ख़ासकर पिछले दिनों फ़्रांस में जिस तरह की हिंसा और अराजकता दिखी, उसके पीछे अफ्रीकी मूल के एक मुस्लिम युवक की हत्या थी. इस हिंसा के बाद किसी भी विदेशी प्रधानमंत्री द्वारा फ्रांस की यह पहली यात्रा होगी. हो सकता है कि PM मोदी वहां मुस्लिम नेताओं से भी मिलें. अभी मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल ने इंडिया इस्लामिक सेंटर में आयोजित एक समारोह में विश्व मुस्लिम लीग के महासचिव और सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल ईसा के सम्मान समारोह में कहा, कि पाकिस्तान भारत के बारे में दुष्प्रचार किया करता है. हक़ीक़त यह है कि भारत में मुसलमान और उनके मज़हब को कोई खतरा नहीं है।

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यही वजह है कि मुस्लिम देश इंडोनेशिया को छोड़ दें तो भारत में विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी रहती है. उन्होंने जोर दे कर कहा कि OIC (इस्लामिक सहयोग संगठन) के 33 सदस्य देशों के बराबर मुसलमान भारत में रहते हैं.दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की आम छवि मुस्लिम विरोधी बताई जाती है, और इसकी वजह फ़रवरी 2002 का गुजरात दंगा बताया जाता है. उन पर आरोप लगता है, कि तब उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री (Chief Minister) उस पर अंकुश पाने की कोशिश नहीं की थी. इसके अलावा जम्मू कश्मीर के लिए आरक्षित अनुच्छेद 370 हटाना, नागरिकता क़ानून में संशोधन (CAA), ट्रिपल तलाक़ को समाप्त करना और अब समान नागरिक संहिता (UCC) लाने के लिए पहल करना. इन सबको आधार बना कर उनके विरोधी उन पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाते रहते हैं. इसलिए बीच-बीच में वे मौलनाओं से मिलते हैं, मुसलमानों के जलसे में भी जाते हैं. परंतु देश का 18 प्रतिशत मुसलमान वोटर भाजपा (BJP) सरकार से सारे लाभ लेकर भी सामान्य तौर पर उनसे छिटका रहता है. इसकी एक वजह तो देश के मुस्लिम के मुस्लिम वोटरों की एकजुटता है.कांग्रेस समेत सभी विरोधी दल इस वोट बैंक पर अपना पुश्तैनी हक़ मानते हैं, और उनकी पूरी कोशिश भाजपा को इससे दूर करने की रहती है. इसके अतिरिक्त चूंकि विश्व में मुस्लिम समुदाय अपनी एकजुटता के लिए विख्यात है और अपनी धार्मिक कट्टरता के लिए भी. क़रीब 59 देशों का एक संगठन है, जिसे OIC कहते हैं. मुस्लिम देशों में पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़ कर सभी समृद्ध हैं और अधिकांश में तो क्रूड ऑयल का अकूत ख़ज़ाना है. लाखों भारत वंशी इन देशों में नौकरी और व्यापार करते हैं तथा वहां की कमाई से जो बचत होती है, भारत भी भेजते रहते हैं. इसके अतिरिक्त सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिए मुस्लिम विरोधी छवि दिखना ठीक नहीं है. क्योंकि उत्तर दिशा छोड़ कर हर तरफ़ मुस्लिम देश हैं. पश्चिम में तो इतने अधिक कि अटलांटिक महासागर तक मुस्लिम देश ही छाये हैं. इसलिए कोई भी सरकार मुसलमानों से बेर नहीं ठान सकती.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी सार्वजनिक तौर पर न ऐसा दिखाया और न जताया कि वे मुसलमानों से कोई दूरी बरतते हैं. कुछ लोग उनके इफ़्तार पार्टियों से दूर रहने या मुस्लिम टोपी के न पहनने को मुद्दा बनाते हैं, पर इस्लामिक दृष्टि ये दोनों बातें कोई धार्मिक मायने नहीं रखतीं. इसलिए प्रधानमंत्री भारत के और विदेशों के इस्लामिक विद्वानों तथा मौलवियों से मिलते रहते हैं. भले ये कूटनीतिक चाल हो किंतु प्रधानमंत्री इस बात के तनिक भी इच्छुक नहीं हैं, कि वे मुस्लिम विरोधी बन कर यहाँ के बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को खुश करें. यूं भारत में हिंदू किसी भी धर्म से न तो डरा न उसे डराया. इसकी ख़ास वजह हिंदू समाज का स्वभाव से ही उदारमना होना है. थोड़ी संख्या में आए तुर्कों या यूरोपीय हमलावरों द्वारा यहां की भूमि को जीत लिए जाने और क़रीब 800 वर्षों तक राज करने को हिंदू समाज की कायरता बताते हैं. लेकिन यह सच नहीं है.सच तो यह है, कि हिंदू मानस ने अध्यात्म और राजनीति का घालमेल नहीं किया. भारत के सारे प्राचीन धर्म- वैदिक, जैन, बौद्ध और लोकायत ने धर्म को समझने की कोशिश की. कोई ईश्वर है या नहीं उसे जानने की कोशिश की. कभी भी इसके ज़रिए समाज को एकजुट करने अथवा राज्य जीतने की कोशिश नहीं की. पुरुषार्थ का महत्व यहां है, पर वीतरागी बन कर जीना उत्तम माना गया है. इसलिए तुर्क आए अथवा यूरोपीय राजा उनसे लड़े प्रजा इन हमलावरों से दूर रही. उन्होंने राज्य कायम किया तो उन्हें म्लेच्छ बता कर अपनी सामाजिक व्यवस्था में उन्हें नहीं घुसने दिया. इसी उदासीनता से बहुत से हिंदू मुसलमान बन गए अथवा ईसाई. लेकिन यह भी अजीब है कि मुसलमानों ने यहाँ 750 वर्ष तक राज किया लेकिन वे हिंदुस्तान को ईरान, मंगोलिया अथवा मध्य व दक्षिण पूर्व एशियाई देशों- मलेशिया, इंडोनेशिया या ब्रुनेई की तरह इस्लामिक स्टेट नहीं बना सके.अब राजनीति बदल गई है. धर्म एक टूल है, संगठित करने का और संगठन के ज़रिए धन-लाभ पहुँचाने का. लोकतंत्र में वोटर बहुत महत्त्वपूर्ण है उसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और सिख में बाँटना भी पड़ता है और धमक कर अपने पाले में लाना भी पड़ता है. नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि के चलते हिंदू वोटरों को तो अपनी तरफ़ किया लेकिन मुस्लिम, जो हिंदू के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक है, मोदी से दूर रहा।

PM मोदी की इस छवि से हिंदुओं में अन्य पश्चिम एशियाई देशों के धर्मों की तरह कट्टरता बढ़ी. मसलन ऊपर वाले ने सिर्फ़ हिंदुओं को बनाया है, ताकि वे गैर हिंदुओं को सुधार कर हिंदू बनाएँ. लेकिन यहीं से गड़बड़ शुरू हो गई, क्योंकि हिंदू धर्म की किसी भी संहिता में दूसरे धर्म वालों को हिंदू धर्म में लाने की व्यवस्था नहीं है. हिंदू धर्म आत्मा की शुद्धि के लिए उसे किसी अन्य धर्म से कोई आपत्ति नहीं. बशर्ते उस धर्म के लोग उनके सामाजिक आचार-विचार में घुसने की कोशिश न करें.यह कट्टरता हिंदुओं के लिए भी भारी पड़ने वाली है. क्योंकि हिंदुओं ने राजनीति की नहीं इसलिए कोई मजबूत धार्मिक समाज उन्होंने बनाया नहीं. यहां तो हर व्यक्ति के अपने देवी-देवता हैं. यहां तक कि परिवार में जितने सदस्य हैं, उतने उनके देवी-देवता. कोई राम का उपासक है तो कोई श्याम का. किसी के आराध्य शिव हैं तो कोई सिर्फ़ गणेश का. कुछ कार्तिकेय को अपना ईष्ट मानते हैं तो कुछ पार्वती को. कोई राधे-राधे बोलता तो कोई जै श्रीकृष्ण. मज़े की बात कि ये सारे लोग अपने ईष्ट के अतिरिक्त किसी अन्य के प्रति श्रद्धा भी नहीं रखते. कहते हैं, तुलसी एक बार मथुरा-वृंदावन गए. वहाँ पर कृष्ण की भव्य मूर्ति देख़ कर वे बोले- का बरनऊं छवि आपकी भले बने हो नाथ, पर तुलसी मस्तक तब नवै जब धनुष-बाण लेउ हाथ!! इस तरह तुलसी ने बता दिया कि वे तो सिर्फ़ राम को ही प्रणम्य मानते हैं.यही कारण है, कि PM मोदी अब हिंदुओं को भी यह समझा रहे हैं, कि मुसलमान भी इस देश के लिए आवश्यक हैं. उनसे दूरी बना कर हिंदू अपना ही नुकसान करेंगे. यह दूरी विश्व मंच पर न जाने पाए इसलिए PM न सिर्फ़ भारत के उदारवादी मौलानाओं से संपर्क साधे रहते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस्लामिक विद्वानों के साथ संपर्क रखते हैं. शायद PM मोदी बताना चाहते हैं कि किसी एक धर्म के आधार पर कोई राजनीति नहीं चल सकती. सभी धर्मों को मानने वालों से समान व्यवहार से राजनीति चलती है और लोकतंत्र फलता-फूलता है. इसके पीछे यह भी एक वजह है कि मोदी विरोधी बुद्धिजीवी और राजनीतिक ख़ासकर राहुल गांधी विदेशों में मोदी को मुस्लिम विरोधी बता कर बदनाम करते रहते हैं।

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