भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई में चल रहे कॉप-28 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए यूएई जा रहे हैं। कॉप-28 बैठक का आयोजन 28 नवंबर से 12 दिसंबर, 2023 तक हो रहा है। इस बैठक में पीएम मोदी पर्यावरण बदलाव को लेकर भारत के आगामी रोडमैप पर अपने विचार रखेंगे। भारत की आवाज में विकासशील देशों की समस्याओं का जिक्र होगा। वहीं पर्यावरण के मुद्दे पर विकासशील देशों की प्रमुख आवाज भारत बनेगा। इसके पहले ग्लासगो (ब्रिटेन) में इसी बैठक में पीएम मोदी ने भारत को वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल (देश से कार्बन उत्सर्जन को खत्म करने) का रोडमैप पेश किया था।

प्रधानमंत्री की यह वर्ष 2023 में यूएई की दूसरी बैठक है। इस बार यूएई में कॉप-28 के विभिन्न सत्रों में विश्व के 167 देशों के सरकारों के प्रमुखों या उनके प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की संभावना है। पीएम मोदी कई देशो के राष्ट्राध्यक्षों के साथ अलग से भी द्विपक्षीय बैठक करेंगे। इस सम्मेलन ने मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू भी हिस्सा लेने आ रहे हैं। हालांकि पीएम मोदी की उनके साथ बैठक का कोई प्लान नहीं है। मालदीव के प्रेसिडेंट तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन से मिलने के बाद मालदीव आएंगे। तुर्की की मोइज्जू से मुलाकात भारत के खिलाफ मुस्लिम ध्रवीकरण की एक रणनीति हो सकती है। पीएम मोदी की मुलाकात ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रइसी के साथ होने की संभावना है। फ्रांस, जर्मनी, जापान, सऊदी अरब, ब्राजील के शीर्ष नेताओं के भी इसमें हिस्सा लेने की संभावना है। इजराइल और हमास के बीच विवाद का साया इस बैठक पर पड़ने की आशंका थी, लेकिन अब दोनों पक्षों के बीच कुछ शांति स्थापित हुई है तो ज्यादा नेताओं के इसमें हिस्सा लेने की संभावना है।कॉप-28 एक सालाना बैठक है। यह दुनिया में जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं पर चिंता और विमर्श करने वाला एकमात्र बहुपक्षीय निर्णय लेने वाला मंच है। इस सम्मेलन में दुनिया के करीब करीब सभी देश हिस्सा लेते हैं। इजराइल और हमास जंग व रूस और यूक्रेन युद्ध की परिस्थितियों के बीच यह सामने आए ‘भू राजनीतिक’ जोखिमों के मद्देनजर यह सम्मेलन काफी अहम है। इसमें जलवायु परिवर्तन पर तो विमर्श होगा ही, साथ ही अन्य देशों से अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की द्विपक्षीय बातचीत भी होंगी, जो काफी उपयोगी साबित होंगी।भारत एक तेजी से बढ़ता विकासशील देश है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश भारत विकासशील देशों की प्रमुख आवाज है और पुरजोर तरीके से अपना पक्ष रखेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। वैसे भारत ग्रीन हाउस गैसों के शीर्ष उत्सर्जकों में से एक है। ऐसे में भारत के लिए यह अहम होगा कि वह महत्वाकांक्षी (दूरदर्शी) रहे, साथ ही न्यायसंगत भी रहे। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे सम्मेलनों में सिर्फ चर्चा न हो, बल्कि कंक्रीट समाधान निकले यह जरूरी है। इसके लिए तीन उद्देश्यों का पूरा होना जरूरी है। ये हैं—एजेंडा व लक्ष्यों का निर्धारण, जमीन पर उतारने की प्रक्रिया का निर्धारण और कार्यान्वयन व प्रगति की निगरानी। यह सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब यह साल रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा है। यही नहीं, जंगल की आग, बाढ़,सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं आपदाओं के साथ-साथ भू-राजनीतिक रूप से भी अशांत रहा है।

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