कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने जाति आधारित जनगणना का मुद्दा उठा दिया है। इसके बाद से सियासत के केंद्र में रहने वाले लिंगायत-वोक्कालिगा के साथ पिछड़ी जातियों की भी चर्चा तेज हो गई है। कर्नाटक की चुनावी रैली में राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2011 की जाति आधारित जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने की भी चुनौती दी। राहुल ने कर्नाटक में जातीय जनगणना पर क्या-क्या कहा? राहुल गांधी के बयान का कर्नाटक के चुनाव में कितना असर पड़ेगा? कर्नाटक की राजनीति में पिछड़ी जातियों का कितना असर है? आइये जानते हैं।

राहुल गांधी ने रविवार को कर्नाटक में पहली चुनावी रैली की। राहुल ने इस दौरान कहा, ‘यूपीए ने 2011 में जाति आधारित जनगणना की। इसमें सभी जातियों के आंकड़े हैं। प्रधानमंत्री जी, आप ओबीसी की बात करते हैं। उस डेटा को सार्वजनिक करें। देश को बताएं कि देश में कितने ओबीसी, दलित और आदिवासी हैं।’ राहुल ने आगे कहा कि अगर सभी को देश के विकास का हिस्सा बनना है तो प्रत्येक समुदाय की आबादी का पता लगाना जरूरी है। कृपया जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करें ताकि देश को पता चले कि ओबीसी, दलितों और आदिवासियों की जनसंख्या कितनी है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो यह ओबीसी का अपमान है।

आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की सीमा को हटा दें। कांग्रेस नेता ने यह भी बताया कि सचिव भारत सरकार की रीढ़ होते हैं, लेकिन केंद्र सरकार में दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदायों से संबंध रखने वाले केवल सात प्रतिशत सचिव हैं। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अजय कुमार सिंह कहते हैं, ‘देश में पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी की आबादी करीब 50 फीसदी से ज्यादा है। 2014 के बाद से ओबीसी वर्ग का ज्यादा वोट भाजपा को ही मिला है। विपक्ष में जितने दल हैं, उनमें शामिल ज्यादातर नेता भी ओबीसी वर्ग के ही हैं। ऐसे में सभी पार्टियों का फोकस इन वोटर्स पर है।’डॉ. अजय कहते हैं, ‘राहुल गांधी को भाजपा ने मोदी सरनेम विवाद में ओबीसी विरोधी बताया। इसी का खूब प्रचार किया गया। ऐसे में राहुल गांधी ने बड़े ही साफ तरीके से खुद का बचाव करते हुए भाजपा पर ही अटैक करना शुरू कर दिया है। राहुल को उम्मीद है कि इससे उनकी पार्टी को न सिर्फ कर्नाटक चुनाव में फायदा हो सकता है, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी बढ़त मिल सकती है।’कर्नाटक में 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है। इनमें सबसे ज्यादा हिन्दू 5.13 करोड़ यानी 84 फीसदी हैं। इसके बाद मुस्लिम हैं जिनकी जनसंख्या 79 लाख यानी 12.91 फीसदी है। राज्य में ईसाई 11 लाख यानी लगभग 1.87 फीसदी हैं और जैन आबादी 4 लाख यानी 0.72 फीसदी है।

54 फीसदी ओबीसी वोटर्स हैं। 2018 के चुनाव में इनमें से करीब 50 प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया था। इसके अलावा लिंगायत सुदाय की आबादी 19 प्रतिशत है। इनके 70 प्रतिशत वोट भाजपा को ही मिले थे। वोक्कालिगा समुदाय का सबसे ज्यादा वोट जेडीएस और फिर कांग्रेस को मिला था। राज्य में कुरुबा जाति की आबादी आठ फीसदी, एससी 17 फीसदी, एसटी सात फीसदी हैं। लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के चलते हुआ था।ऐसा नहीं है कि केवल कर्नाटक में ही ओबीसी पर सियासत हो रही है। बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने जातीय जनगणना शुरू करवा दिया है। यूपी में अखिलेश यादव लगातार इसकी मांग कर रहे हैं। इसी तरह तमिलनाडु से लेकर कई राज्यों में जातीय जनगणना की मांग हो रही है। कहा जा रहा है कि इसके जरिए सारे विपक्षी दल भाजपा को घेरना चाहते हैं।

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