एक साक्षात्कार के दौरान आर पी मौर्य (चीफ भारतीय राष्ट्रीय पार्टी) जी ने बड़ा खुलासा किया है और कहां कि गांव हो या शहर कही का भी सर्वे कर लीजिए 95% लोगों का राजनीति में इंट्रेस्ट नही है, वे अपने बच्चो को राजनीति में भेजना ही नही चाहते है। अपने बेटे बेटियों को नेता बनाने के नाम से भागते हैं। इसका कारण यह नही कि वें राजनीति को समझते नही, न जाना चाहते है, चाहते है, हर कोई अपने बेटे बेटियों को सीएम पीएम के रूप में देखना चाहता है परंतु परिणाम उन्हे पता है कि एक आम व्यक्ति का भारत में राजनीतिक भविष्य क्या है? लोग संघर्ष इसीलिए नही करते क्योंकि उन्हें सफलता असंभव सी लगती है।

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट कहा था की सत्ता हर ताले की चाभी है और अब भारत में रानी के पेट से राजा पैदा नही होगा। लेकिन नही, रानी अभी जिंदा है जो अपने पेट से ही राजा पैदा कर रही है बस तरीका बदल गया है।पहली बार जब देश में कांग्रेस की सरकार बनी तो वह देश और संविधान के प्रति पूर्णतया समर्पित नही रही जिसके चलते भ्रष्टलोगों, माफियाओं और षड्यंत्रकारियों को राजनीति में वरीयता दी गई। दरवाजा खोल दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि धीरे धीरे उनका बर्चश्व बढ़ता चला गया। ऐसे लोगों का आज राजनीति में दबदबा है, एकाधिकार है, पीढ़ी दर पीढ़ी विधायक सांसद उन्ही के परिवार से बन रहे है। अर्थात राजनीति भोग का विषय बन चुकी है।

रानी के पेट का आपरेशन अभी बाकी है। आज उसी कांग्रेस का नया वर्जन बीजेपी है जो देश के लिए अभिशाप बन चुकी है। अगर कोई आम नागरिक इन अपराधियों/माफियाओं के खिलाफ चुनाव लड़ता है तो उसे सबसे पहले उस क्षेत्र के गुंडों माफियाओं से निपटना होता है, कई ऐसी सीटें है जो गुण्डो माफियाओं के नाम रिजर्व है । इतनी शक्ति आम नागरिक में कहां कि इनसे लड़े ! यही सोचकर वह निराश और हताश हो जाता है, फिर राजनीति से अपनी दूरी बना लेना ही उचित समझता है।आज कल की राजनीति पार्टियों में लोकतंत्र कहां? राजनीतिक पार्टियां रानी की तरह हो गई है, अपने पेट से ही राजा पैदा करेंगे, जो एक ही परिवार से होते है। राजनीतिक पार्टियों में एकाधिकार हो चुका है जो आगे बढ़ गई उनके नीचे आने का कोई चांस है ही नही। कोई व्यक्तिवाद, कोई परिवारवाद तो कोई मनुवाद से ग्रसित हैं। ऐसे में यही पार्टियां मनमानी तरीके से पैसे वसूलते है जो आम नागरिक दे ही नही सकता तो उन्हें पूछेगा कौन? चारो तरफ अपनी अपनी लगी पड़ी है न किसी को देश की चिंता है और न ही समाज की।इससे हटकर देखा जाय तो इसके लिए आम जनता की वर्तमान सोच भी चिंतनीय है। वह नेता को हवाई जहाज में उड़ने वाला, अंधाधुंध खर्च करने वाला, माफिया, बड़े बड़े गुंडों को पालने वाला आदि के रूप में देखना चाहती है। जो आम नागरिक पूरा नहीं कर पाता है और राजनीति में पीछे रह जाता है ।चुनाव आयोग भी इसके लिए बराबर का जिम्मेदार है क्योंकि जब भी कोई भी नई पार्टी बनती है तो वह कोई वरीयता नही देता है। चुनाव चिन्ह तत्काल फिक्स नही करता और अन्य सुविधा नही देता जो देना चाहिए। गोदी मिडिया भी उनको महत्त्व नहीं देती, न ही अपने चैनल पर दिखाती है न ही वे प्रयाप्त पैसे उन्हे खिला पाते है। अर्थात नई पार्टियां भी वही समस्या झेलती है जो आम नागरिक झेलता है । असीमित संसाधन न होने के कारण थोड़े दिनों में वे भी घुटने टेक देती है और भारत का भविष्य अंधकारमय बना रहता है। प्रकाश के किरण की कोई उम्मीद नही।हर भारतीय नागरिक को इस पर गहन चिंतन मंथन करने और उचित निर्णय लेने की जरूरत हैं । समस्या है तो समाधान भी है।

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