बिहार के जमुई में लगातार मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ सालों में अनुमान से कम बारिश हुई है, जो जिला कृषि कार्यालय के वर्ष 2006 से 2023 यानि 18 साल के वर्षापात की रिपोर्ट इशारा कर रही है।पिछले 18 साल में 15 साल जून महीने में सामान्य से कम वर्षा हुई है, जबकि जुलाई में 13 साल सामान्य से कम बारिश हुई है।पिछले चार साल से लगातार कम वर्षा हो रही है। बारिश का कम होना आना धान की खेती के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है। साथ ही नए फसल चक्र तलाशने पर बल दे रहा है। कृषि वैज्ञानिक इसके पीछे जलवायु परिवर्तन मुख्य कारक मानते हैं।कृषि वैज्ञानिक के अनुसार, बारिश में कमी आना खेती की पद्धति और फसल चक्र में बदलाव ला देगा। जिले के अधिकांश लोगों का जीविकोपार्जन का जरिया खेती ही है।
जिले में बदलती बारिश की प्रकृति को समझने के लिए 18 साल के वर्षापात का अध्ययन किया गया। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 18 सालों में जून महीने में निर्धारित सामान्य बारिश (164.50 एमएम) से अधिक बारिश सिर्फ तीन साल 2006, 2011 एवं 2021 में हुई थी।शेष 15 सालों में सामान्य से कम बारिश हुई है। आंकड़े बता रहे कि जून महीने में वर्ष 2006 के बाद 2011 और 2021 में सामान्य बारिश हुई हैा।इसी प्रकार इन 18 सालों में जुलाई में भी वर्षा का ट्रेंड बदलता रहा है। वर्ष 2006 और 2007 में सामान्य वर्षापात से अधिक वर्षा हुई। इसके बाद 2008 से 2013 यानि छह साल तक सामान्य से कम वर्षा हुई। फिर 2014 में सामान्य से अधिक बारिस हुई जबकि 2015 में थोडी कम यानि 276.40 एमएम बारिश हुई।वर्ष 2016 से 2017 तक अधिक वर्षा क्रमश: 302.45 एवं 367.10 एमएम वर्षा हुई। 2018 में निर्धारित सामान्य वर्षापात इतनी ही बारिश हुई। इसके बाद की स्थिति डराने वाली है।2019 से लेकर 2022 तक लगातार वर्षापात में गिरावट आती गई। इस साल पिछले साल की अपेक्षा वर्षापात का आंकड़ा बढ़ा, लेकिन सामान्य वर्षापात का 59.35 फीसद ही पहुंच पाया है।अगस्त और सितंबर माह में भी वर्षापात में उतार-चढ़ाव आता रहा है। अगस्त माह का जिले में सामान्य वर्षापात 272.80 एमएम है। वर्ष 2006 से 2008 यानि तीन साल तक सामान्य से कम वर्षा हुई।वर्ष 2009, 2011 एवं 2016 में सामान्य वर्षापात का आंकड़ा छूआ है जबकि वर्ष 2010 के अलावा 2012 से 2015 यानि चार साल कम वर्षा हुई।फिर 2016 में अधिक वर्षा हुई, लेकिन 2017 से 2022 तक वर्षापात में निरंतर गिरावट आती चली गई। सितंबर महीने की बात करें तो इस महीने जिले का सामान्य वर्षापात 222.90 एमएम है।इस महीने में 2006 से 2007 तक सामान्य से अधिक वर्षा हुई। इसके बाद 2008 से 2015 तक कम बारिश हुई। 2016 में सामान्य (303.20 एमएम) से अधिक बारिश हुई।कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. सुधीर कुमार सिंह ने कहा कि बारिश में आई कमी को देखते हुए फसल चक्र में बदलाव की आवश्यकता दिखने लगी है। नई फसल चक्र को लेकर अनुसंधान किया जा रहा है। कम बारिश होने से धान की खेती प्रभावित होगी।इसलिए अब धान की जगह मक्का-गेहूं फसल चक्र के विकल्प के साथ मोटे अनाज की खेती पर जोर देना होगा। साथ ही कम अवधि वाली अरहर की खेती भी किसानों के लिए विकल्प हो सकती है।