हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का बड़ा विशेष महत्व है।आज चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो गई और नवरात्र में 9 दिन मां भगवती के भक्ति और शक्ति की उपासना होती है. नवरात्र में 9 दिन अलग-अलग स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. आज पहले दिन कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हुई है. आज का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि:

आचार्य मनोज मिश्रा ने बताया कि नवरात्र में आदिशक्ति के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. आज पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है शैलपुत्री सफेद रंग का वस्त्र धारण करती हैं. उनकी सवारी बैल है मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है .मां का यह स्वरूप सौम्य करुणा स्नेह और धैर्य को दर्शाता है. जो भक्त नवरात्रि के पहले दिन विधि विधान के साथ मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं उनके जीवन में सुख शांति समृद्धि की प्राप्ति होती है।

कलश स्थापना:

शैलपुत्री की पूजा करने से पहले स्नान करे स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा चौकी पर माता की तस्वीर लगाकर कलश स्थापना करें. मां शैलपुत्री को कुमकुम और अक्षत लगाए और उसके बाद फूल चढ़ाएं. माता रानी को सफेद रंग के फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है इसलिए उजाला फूल और माला चढ़ाएं, धूप दीप दिखाएं. मां शैलपुत्री को सफेद मिठाई अति प्रिय है इसलिए सफेद मिठाई का भोग लगाए और उसके बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और उसके बाद मां की आरती उतारे. इस तरह से पूजा अर्चना करने से मां शैलपुत्री काफी प्रसन्न होती हैं. अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है।

अन्न का सेवन वर्जित:

दिन भर व्रत करने के बाद शाम को पूजा करें. शाम को भी माता रानी को फूल अक्षर चढ़कर भोग लगाए आरती उतारें और उसके बाद तमाम भक्तों में प्रसाद का वितरण करें. आचार्य मनोज मिश्रा ने साफ तौर पर कहा कि साल में चार नवरात्रि होती है. दो गुप्त एक शारदीय और एक चैत्र नवरात्र चैत्र नवरात्र का भी शारदीय नवरात्र की तरह पूजा अर्चना किया जाता है. माता रानी का कलश स्थापना कर विधिपूर्वक पूजा कर रहे भक्तों को अन्न का सेवन करना वर्जित माना गया है. हालांकि उन्होंने अभी कहा कि कई भक्त पहले दिन और अष्टमी के दिन उपवास रखते हैं।

मां शैलपुत्री के पूजा मंत्रः

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम् ।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥

या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।

ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

माता शैलपुत्री की आरती:

मां शैलपुत्री की आरती शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो।भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
जोर से बोलो जय माता दी,सारे बोले जय माता दी

मां शैलपुत्री की कथा:

आचार्य मनोज मिश्रा ने कहा कि मां शैलपुत्री से पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है. मां सती का ही स्वरूप मां शैलपुत्री है. देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था. इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया था लेकिन भगवान शिव को यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा गया था. जिससे मां सती बहुत दुखी हुईं. वहां पर पहुंचकर उन्हें अपना पति का अपमान महसूस हुआ उनकी माता के अलावा बाकी सभी लोगों ने उनसे मुंह फेर लिया और मजाक उड़ने लगे.तब खुद प्रजापति दक्ष ने भी माता सती व उनके पति का बहुत अपमान किया. इस अपमान सहना ना करने पर सती अग्नि में कूद गईं. अपने प्राण त्याग दिए. जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वह क्रोधित हो गए और पूरे यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. इसके बाद माता सती ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया जहां उनका नाम शैलपुत्री रखा गया।

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