आज 12 अप्रैल दिन शुक्रवार को चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है. चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा करते हैं. हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मां कूष्मांडा की उपासना का विधान है. इस बार मां कूष्मांडा की पूजा सौभाग्य योग में होगी. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं कि मां कूष्मांडा की पूजा कैसे करते हैं? पूजा का शुभ मुहूर्त, मंत्र, भोग और आरती क्या है?

सौभाग्य योग में होगी मां कूष्मांडा की पूजा:

आज पूरे दिन सौभाग्य योग बना हुआ है. सौभाग्य योग आज प्रात:काल से लेकर कल 02:13 ए एम तक बना हुआ है. इतना ही नहीं, रोहिणी नक्षत्र भी पूरे हदन है. आज प्रात:काल से लेकर देर रात 12 बजकर 51 मिनट तक रोहिणी नक्षत्र है, उसके बाद से मृगशिरा नक्षत्र है. सौभाग्य योग और रोहिणी नक्षत्र को कार्यों को करने के लिए शुभ माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन के मुहूर्त:

चर-सामान्य मुहूर्त: 05:59 एएम से 07:34 एएम तकलाभ-उन्नति मुहूर्त: 07:34 एएम से 09:10 एएम तकअमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: 09:10 एएम से 10:46 एएम तकशुभ-उत्तम मुहूर्त: 12:22 पीएम से 01:58 पीएम तक

आज के दिन का ब्रह्म मुहूर्त 04:29 एएम से 05:14 एएम तक है. वहीं अभिजीत मुहूर्त 11:56 एएम से 12:48 पीएम तक है. रवि योग आज देर रात 12:51 एएम कल सुबह 05:58 एएम तक है।

कौन हैं मां कूष्मांडा?

8 भुजाओं वाली मां कूष्मांडा शेर पर सवार होती हैं. वे अपने भुजाओं में कमल पुष्प, धनुष, बाण, गदा, चक्र, माला, अमृत कलश आदि धारण करती हैं. वे इस पूरे ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी हैं. उन्होंने अत्याचार और अधर्म को खत्म करने के लिए यह अवतार लिया. वे चौथी नवदुर्गा हैं. उनके अंदर निर्माण की शक्ति समाहित होती है।

मां कूष्मांडा की पूजा के फायदे:

यदि आप मां कूष्मांडा की पूजा करते हैं तो आपके दुखों का अंत होगा और जीवन में आने वाले संकट मिट जाते हैं. मां कूष्मांडा की आराधना करने से व्यक्ति के यश और कीर्ति में बढ़ोत्तरी होती है. उम्र भी बढ़ती है।

मां कूष्माण्डा का भोग:

मां कूष्मांडा को पूजा के समय मालपुए का भोग लगाना चाहिए. उनको मालपुआ बहुत प्रिय है।

मां कूष्मांडा की पूजा विधि:

आज चौथे दिन प्रात:काल में स्नान आदि से निवृत होकर साफ कपड़े पहन लें. उसके बाद मां कूष्मांडा की पूजा करें. सबसे पहले मां कूष्मांडा का जल से अभिषेक करें. उनको अक्षत्, सिंदूर, फल, गुड़हल या गुलाब का फूल, लाल रंग की चुनरी या साड़ी, श्रृंगार सामग्री, धूप, दीप आदि अर्पित करें. उस दौरान पूजा मंत्र का उच्चारण करें. उनको मालपुए का भोग लगाएं. सबसे अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें।

मां कुष्‍मांडा का पूजा मंत्र:

बीज मंत्र: कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
पूजा मंत्र: ऊं कुष्माण्डायै नम:
ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

ओम देवी कूष्माण्डायै नमः

ऐं ह्री देव्यै नम:

मां कूष्मांडा की आरती:

कूष्मांडा जय जग सुखदानी. मुझ पर दया करो महारानी॥पिगंला ज्वालामुखी निराली. शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे. भक्त कई मतवाले तेरे॥भीमा पर्वत पर है डेरा. स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे. सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥तेरे दर्शन का मैं प्यासा. पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी. क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥तेरे दर पर किया है डेरा. दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो. मेरे तुम भंडारे भर दो॥तेरा दास तुझे ही ध्याए. भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

कूष्मांडा जय जग सुखदानी. मुझ पर दया करो महारानी॥

मां कुष्मांडा की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा. मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था. मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी. पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है. इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है।

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