जम्मू-कश्मीर में भूमिहीन लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत पांच मरला जमीन देने के प्रशासन के फैसले पर सियासी घमासान शुरू हो गया है. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) की ओर से इस फैसले पर सवाल उठाने के बाद घाटी के अन्य राजनीतिक दलों ने भी इस कदम पर सवाल उठाया. साथ ही उपराज्यपाल से लाभार्थियों के संबंध में स्पष्टता की मांग की. नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और राज्य के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार (7 शुक्रवार) को कहा कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वे बेघरों में किसे गिन रहे हैं. क्या बेघरों में वे लोग भी शामिल हैं जो एक सप्ताह पहले यहां आये हैं?

क्या कोई कट-ऑफ तारीख है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जो लोग 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर आए हैं उन्हें इन सूचियों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. उमर अब्दुल्ला ने कहा कि 2019 के बाद उन्होंने (सरकार) कई लोगों को यहां बसाने की कोशिश की है. अगर इरादा ऐसे व्यक्तियों को जमीन उपलब्ध कराने का है तो ये निश्चित रूप से हमारे मन में संदेह पैदा करेगा. सरकार को पहले ये स्पष्ट करना चाहिए कि वे बेघरों की गिनती कैसे कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गुरुवार (6 जुलाई) को सरकार पर बेघरों के लिए घर के नाम पर दस लाख लोगों को जम्मू-कश्मीर में लाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा कि ये भूमिहीन लोग कौन हैं? ये बेघर लोग कौन हैं? इन बेघर लोगों की तो कोई गिनती ही नहीं है. सरकार बात कर रही थी कि बाहर से निवेश आएगा और निवेश के बजाय, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में बाहर से लोगों को लाना शुरू कर दिया है. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने इस योजना के लिए पात्रता मानदंड स्पष्ट करने और 5 अगस्त 2019 के बाद यहां आए व्यक्ति को शामिल नहीं करने की मांग की. उन्होंने कहा कि अब जब सवाल उठाए जा रहे हैं प्रशासन के लिए ये स्पष्ट करना समझदारी होगी कि क्या भूमिहीनों और बेघरों को जमीन देने में केवल 5 अगस्त 2019 से पहले के अधिवास धारक शामिल हैं. दावा किया गया है ग्रामीण विकास विभाग की सूची में कोई भी नया व्यक्ति शामिल नहीं होगा, लेकिन स्पष्टीकरण जरूरी है. इस बीच, जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से बुधवार देर रात स्पष्टीकरण जारी करने के बाद पीडीपी ने प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी पर निराशा व्यक्त की है. पार्टी ने बयान जारी कर कहा कि 2021 में बेघर लोगों की संख्या 19,047 से बढ़कर लगभग दो लाख तक पहुंचने का मुख्य प्रश्न अनसुलझा है. पीएमएवाई राज्य में अलग नामों से दशकों से चल रही है. जिसमें पहचान से लेकर कार्यान्वयन स्तर तक हमेशा भारत सरकार की ओर से निगरानी की जाती रही है. जम्मू-कश्मीर प्रशासन का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बयान तथ्यात्मक रूप से गलत हैं और उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना योजना की कोई समझ नहीं है. प्रशासन ने कहा कि सरकार ने उन लाभार्थियों की पहचान करने के लिए जनवरी 2018 से मार्च 2019 के दौरान आवास+ सर्वेक्षण किया, जिन्होंने 2011 सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) के तहत छूट जाने का दावा किया था।

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