नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने रविवार को कहा है कि लगभग ढाई माह पूर्व विधानसभा सत्र काल में आश्वासन के बावजूद चार लाख नियोजित शिक्षकों के मामले में सरकार की चुप्पी रहस्यमय है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन में शामिल दलों की बैठक भी पिछले माह बुलाई गई और कहा गया कि नियोजित शिक्षकों की मांगों के संबंध में यह बैठक की गई, लेकिन किसी भी दल के प्रतिनिधि ने बैठक से बाहर आने के बाद सरकार द्वारा मांगों के मानने संबंधी कोई जानकारी नहीं दी. इस बैठक में न तो नियोजित शिक्षकों के प्रतिनिधि को बुलाया गया और न ही बिहार शिक्षक संघ के किसी नेता को बुलाया गया.विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि अभी तक नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी के समान वेतनमान और सेवा शर्तों की भरपाई हेतु बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया है. सरकार फिर से इस मामले को किसी न किसी प्रकार उलझा कर रखना चाहती है. सरकार की यदि मंशा और नीयत साफ होती तो नियोजित शिक्षकों का मामला कब का सुलझ गया होता. चुनावी फायदे के लिए सरकार कार्यवाही का दिखावा कर रही है. नियोजित शिक्षकों के द्वारा राज्यकर्मी का दर्जा और नियमित शिक्षकों के समान वेतनमान तथा सेवा शर्तों की मांग जायज और न्यायसंगत है. समान काम के लिए समान वेतनमान की अवधारणा को वैधानिक मान्यता प्राप्त है, लेकिन आश्वासन देने के बाद भी सरकार द्वारा नियोजित शिक्षकों के प्रतिनिधि से इस पर चर्चा नहीं करना सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जुलूस प्रदर्शन के दौरान नियोजित शिक्षकों पर दायर मुकदमा को सरकार वापस ले. इनके मांगो के समर्थन में बीजेपी ने भी 13 जुलाई को विधानसभा मार्च किया था. जिसमें पुलिस द्वारा बेरहमी से लाठीचार्ज की गई थी. बीजेपी के एक कार्यकर्ता की जान भी चली गई।
बीजेपी नियोजित शिक्षकों के साथ खड़ी है. सरकार द्वारा यदि इनकी मांगों को मानने में उलझन पैदा की गई या आधा अधूरा मांग माना गया, तो एक बार फिर बीजेपी सड़क से सदन तक इनकी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है.आगे बीजेपी नेता ने कहा कि वैसे नियोजित शिक्षक जो बीपीएससी की परीक्षा में शामिल हुए हैं उनके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. सभी नियोजित शिक्षकों को बिना किसी परीक्षा का राज्यकर्मी का दर्जा मिलना चाहिए. समान काम के बदले समान वेतन की बात महागठबंधन द्वारा घोषणा पत्र में भी की गई है. उपमुख्यमंत्री द्वारा इसे कई अवसरों पर वक्तव्य में दोहराया भी गया है. सरकार को इसलिए इस मामले में लटकाने-भटकाने का चुनावी खेल नहीं करना चाहिए. राज्य के लाखों छात्र छात्राओं के भविष्य का ध्यान रखते हुए नियोजित शिक्षकों के मामले का स्थायी समाधान होना चाहिए।